इधर-उधर बिखरे नरकंकाल और शवों की सड़ांध। यह नजारा किसी कब्रिस्तान कर
नहीं, बल्कि बिहार के एक अस्पताल का है। इन दिनों बिहार के मुजफ्फरपुर
स्थित श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (एसकेएमसीएच) की चर्चा यहां
एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्राम (एईएस) से मौतों के अलावा लावारिस शवों के
साथ अमानवीय व्यवहार को लेकर भी हो रही है।
पोस्टमार्टम हाउस में पड़े सड़े-गले शव
एसकेएमसीएच
में जैसे-तैसे अंत्येष्टि और बिखरे मानव कंकाल के अवशेष स्थानीय पुलिस व
फारेंसिक मेडिसिन एंड टॉक्सीक्लॉजी विभाग (एफएमटी) की लापरवाही उजागर कर
रहे हैं। साथ ही, पोस्टमार्टम हाउस में पड़े सड़े-गले शव भी वहां की बदहाली
बयां कर रहे हैं। वहां विभिन्न थानों द्वारा पोस्टमार्टम के लिए लाए गए
डेढ़ दर्जन से अधिक लावारिस शव महीनों से पड़े सड़ रहे हैं। उनकी
अंत्येष्टि कब होगी, किसी के पास सटीक जवाब नहीं है। एफएमटी की मानें तो हर
माह औसतन आठ से 10 लावारिस शव लाए जाते हैं।

फ्रीजर में केवल छह शवों को रखने की क्षमता
एसकेएमसीएच
के पोस्टमार्टम हाउस में शवों को सुरक्षित रखने के लिए एक डीप फ्रीजर की
व्यवस्था है। उसमें सिर्फ छह शवों को रखा जा सकता है। इससे ज्यादा शव होने
के कारण उन्हें ऐसे ही कमरे में रख दिया जा रहा है। भीषण गर्मी में उच्च
तापमान के कारण शवों में तेजी से सडऩ हो रही है। समझा जा सकता है कि
अप्रैल-मई से यूं ही पड़े शवों की स्थिति क्या होगी?
भीषण गर्मी में शवों से दुर्गंध उठ रही है, जिससे पोस्टमार्टम हाउस में
मौजूद कर्मचारियों का रहना मुश्किल हो रहा है। उनका कहना है कि संसाधनों
के अभाव में वे कुछ नहीं कर सकते।

अंत्येष्टि कराने की जिम्मेदारी पुलिस पर
लावारिस शव
मिलने पर पुलिस मृत्यु समीक्षा पत्र बनाती है। इसमें बाहरी जख्म का विवरण
लिखा जाता है। पहचान के लिए शव की फोटोग्राफी भी कराई जाती है। मृत्यु
समीक्षा पत्र के साथ शव को पोस्टमार्टम के लिए एसकेएमसीएच लाया जाता है।
वहां चिकित्सक विभाग की डायरी में विवरण को दर्ज करता है। इसके बाद
पोस्टमार्टम होता है।

पुलिस देती है डिमांड पत्र
प्रावध्ररनरें की बात करें
तो लावारिस शवों की अंत्येष्टि के लिए पुलिस को रोगी कल्याण समिति की ओर
से प्रति शव दो हजार रुपये का भुगतान किया जाता है। इसके लिए पुलिस समिति
को राशि का डिमांड पत्र देती है। अंत्येष्टि के बाद पुलिस को इसका पूरा
विवरण प्रस्तुत करना पड़ता है।

एफएमटी विभागाध्यक्ष ने बताई ये बड़ी बात
एफएमटी के
विभागाध्यक्ष डॉ. विपिन कुमार कहते हैं कि शव की पहचान नहीं होने पर उसे
72 घंटे डीप फ्रीजर में रखने का प्रावधान है। समय-सीमा पूरा और पहचान नहीं
होने पर संबंधित पुलिस का दायित्व होता है कि वह शव की नियमानुसार
अंत्येष्टि कराए। लेकिन शवों की संख्या अधिक होने और सीमित संसाधनों के
कारण उन्हें बाहर ही रखा जाता है।

Sources:-Dainik Jagran