भारत के कई राजारजवाड़ाओं की कहानी इतिसाह के पन्नों में सुनहरे अक्षरों से लिखी गई है। जबकि कई राजाओं का नामो निशाना इतिहास में जिक्र तक नहीं है। भूतकाल से लेकर वर्तमान समय में अगर राजनीति में बिहार राज्य का नाम ना आए तब तक कहानी अधूरी ही रहती है।
देश के रजवाड़ों में दरभंगा राज का हमेशा अलग स्थान रहा है। ये रियासत बिहार के मिथिला और बंगाल के कुछ क्षेत्रों में कई किलोमीटर के दायरे तक था। रियासत का मुख्यालय दरभंगा शहर था। इस राज की स्थापना मैथिल ब्राह्मण जमींदारों ने 16वीं सदी की शुरुआत में की थी। ब्रिटिश इंडिया में इस रियासत का जलवा अंग्रेज भी मानते थे। महाराज कामेश्वर सिंह के जमाने में तो दरभंगा किले के भीतर तक रेल लाइनें बिछी थी और ट्रेनें आती-जाती थीं।
बिहारी माटी आपको एक सीरीज के तहत बिहार के राजनेताओं और राजरजवाड़ाओं की कहानी से रूबरू कराएगा। सबसे पहले हम बात करेंगे दरभंगा के महाराज यानि कामेश्वर सिंह की। कामेश्वर सिंह को पूरे विश्व में शानो-शौकत के लिए जाना जाता था।
अंग्रेज शासकों ने इन्हें महाराजाधिराज कीउपाधि दी थी। वे जहां अंग्रेजों के विश्वासी और कृपापात्र शासक थे। वहीं, महात्मा गांधी उन्हें अपने बेटे के समान मानते थे।
शानो-शौकत के लिए मशहूर थे महाराज
ब्रिटिश राज के समय 4,495 गांव दरभंगा महाराज की रियासत में थे। 7,500 अधिकारी कर्मचारी राज्य का शासन संभालते थे। महाराज कामेश्वर सिंह अपनी शान-शौकत के लिए पूरी दुनिया में विख्यात थे। अंग्रेजों ने इन्हें महाराजाधिराज की उपाधि दी थी।
महाराज ने अंग्रेजों के समय ही नए जमाने का रंग-ढंग भांप लिया था। इसके मद्देनजर उन्होंने कई कंपनियां शुरू की। इनमें नील, सुगर और पेपर मिल आदि कंपनियां शामिल हैं। हालांकि, दरभंगा रियासत का किला आज उस दौर की तरह नहीं जिसके लिए वह दुनियाभर में मशहूर था। अब किले के आस-पास काफी अतिक्रमण है।
क्यों खास का दरभंगा महाराज का महल
ये बात कुछ ही लोगों को पता है कि कामेश्वर सिंह के राजमहल में रेल की पटरियां बिछी हुई थी। दरभंगा महाराज के पास बड़ी लाइन और छोटी लाइनके लिए अलग-अलग सैलून थे। इनमें वे सफर के दौरान आराम फरमाया करते थे। इसमें न केवल कीमती फर्नीचर थे, बल्कि सोने-चांदी भी जड़े थे। कालांतर में सैलून बरौनी के रेलवे यार्ड में रख दिए गए। दरभंगा महाराज के पास दो बड़े जहाज भी थे।
महाराज के लिए अलग-अलग सैलून
इतना ही नहीं दरभंगा महाराज के लिए रेल के अलग-अलग सैलून भी थे। लोगों की मानें तो इसमें न केवल कीमती फर्नीचर थे, बल्कि राजसी ठाठ-बाट के तहत सोने-चांदी भी जड़े गए थे। बाद में इन सैलून को बरौनी के रेल यार्ड में रख दिया गया। दरभंगा महाराज के पास कई बड़े जहाज भी थे।
गांधी के बेहद करीब थे दरभंगा महाराज
दरभंगा महाराज भी गांधी जी के बेहद करीब थे। आजादी से पहले उन्होंने महात्मा गांधी की एक प्रतिमा बनवाई थी, जिसे विंस्टन चर्चिल की भतीजी प्रख्यात कलाकार क्लेयर शेरीडेन ने बनाया था। इस प्रतिमा का प्रदर्शन तत्कालिक गवर्नमेंट हाउस (वर्तमान में राष्ट्रपति भवन) में किया गया था। इस बात का खुलासा किसी व्यक्ति ने नहीं बल्कि साल 1940 में महात्मा गांधी द्वारा लॉर्ड लिनलिथगो की चिट्ठी से हुआ। गांधी जब 1947 में बिहार घूमने के लिए आए तो उन्होंने एक साक्षात्कार दरभंगा के महाराज को एक प्रभावी और अच्छा इंसान बताया था।