लिफ्ट की परिकल्पना भले ही पश्चिमी देशों से निकली हो। हमारे देश में भी 18वीं शताब्दी के आखिर में तिरहुत सरकार ने इसकी परिकल्पना कर ली थी।
रानी और राजमाता के गंगा स्नान की सुविधा के लिए तिरहुत सरकार ने उस समय चक्र (पुलि) पर चलने वाली लिफ्ट को काशी के दरभंगा हाउस में लगवाया था। दरअसल रानी और राजमाता जब गंगा स्नान के लिए महल से रोज निकलती थी तो उनको सकरी गलियों से होकर आना-जाना पड़ता था।
रानी और राजमाता के आवागमन से आम जनता को परेशानी न हो इसलिए महराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने 50 फुट ऊंचे दरभंगा हाउस के ठीक सामने की ओर मीनार में हाथ से चलने वाली लिफ्ट बनवा दी थी।
गंगा के पश्चिमी तट पर बसी अस्सी और वरुणा के बीच का भूगोल वाराणसी के नाम से विश्वविख्यात है। प्राचीन लोकभाषा “पाली” में वाराणसी को ढाई हजार साल पहले से आमलोग “बनारस” कहा करते थे।