दांडी यात्रा में शामिल एकमात्र बिहारी, पढ़ाई छोड़ आजादी के आंदोलन में कूदे थे कारो बाबू

जानकारी प्रेरणादायक

आजादी की लड़ाई में मिथिलांचल का बड़ा योगदान रहा है। चाहे असहयोग आंदोलन हो या नमक सत्याग्रह या फिर 1942 का अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन, यहां के लोगों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया है।

कुशेश्वरस्थान के बेर निवासी किसान नारायण वल्लभ चौधरी एवं गृहिणी मधु कुंवरी देवी के पुत्र गिरवरधारी चौधरी उर्फ कारो बाबू ने गांव में प्रारंभिक शिक्षा पूरी की। फिर 18 वर्ष की अवस्था में इनके अग्रज हरिगोविंद चौधरी ने वर्ष 1929 में उद्योग मंदिर साबरमती आश्रम में प्रवेश दिलाया।

कारो बाबू ने महात्मा गांधी के साथ की दांडी यात्रा

साबरमती आश्रम में कारो बाबू ने महात्मा गांधी के सान्निध्य में रहकर प्रशिक्षण प्राप्त किया। ये एक वर्ष के प्रशिक्षण में ही महात्मा गांधी के करीबियों मे शुमार हो गए। 12 मार्च से छह अप्रैल 1930 तक नमक सत्याग्रह दांडी यात्रा के लिए चयनित 78 आश्रमवासियों में एक मात्र बिहार के कारो बाबू शामिल थे।

नमक सत्याग्रह के बाद वे अपने गांव लौट कर आजादी की लड़ाई में सक्रिय रहे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद एवं कृपलानी की प्रेरणा से समाज सुधार एवं रचनात्मक कार्य में भाग लेना शुरू किया।

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी शामिल

1936 में छतवन गांव में खादी के प्रचार-प्रसार एवं इसके उत्पादन कार्य में जुट गए। छतवन में पहले प्रति माह 15-20 मन खादी का उत्पादन होता था। वह बढ़कर 117 मन हो गया।

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अपने साथियों के साथ मिलकर कुशेश्वरस्थान के तत्कालीन थाना सिंधिया में तिरंगा झंडा फहरा दिया। गिरफ्तारी से बचने के लिए भूमिगत हो गए।

अपनी चाची के अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए श्मशान घाट पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। अभियोग के बचाव हेतु सरकार से मुहैया वकील को अस्वीकार कर स्वयं केस की पैरवी की। आरोप सिद्ध नहीं होने पर 10 महीने में जेल से रिहा हुए।

आजादी की लड़ाई के साथ कारो बाबू सामाजिक सरोकार से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में काम करने लगे। रामचरणजी के मार्गदर्शन में अपने ग्राम क्षेत्र में कोल्हु एवं धान कुटाई चक्की सहित अन्य उद्योगों की स्थापना तथा मधुमक्खी एवं मछली पालन का प्रचार प्रसार कर इससे जुड़ने के लिए लोगों को प्रेरित किया।

1939 में दरभंगा के धर्म लाल सिंह के मार्गदर्शन में गौ नस्ल सुधार के लिए संपूर्ण दरभंगा जिले में प्रचार प्रसार किया। अपने गृह प्रखंड कुशेश्वरस्थान में नए नस्ल के सांढ़ लाए। आधा से एक लीटर दूध देने वाली गाय पांच से 10 लीटर दूध देने लगी। दर्जन भर विद्यालय व पुस्तकालयों की स्थापना कराई।

कारो बाबू का महाप्रयाण

विनोबा भावे के भूदान यज्ञ में शामिल होकर वर्ष 1959 में अपने इलाके में एक हजार एकड़ जमीन भूमिहीनों के बीच वितरण कराया। समाज में व्याप्त छुआछूत को मिटाने के लिए वर्ष 1948 में 15 दिवसीय सहभोज का आयोजन किया। समाज कल्याण के कार्य करते हुए कारो बाबू का महाप्रयाण 18 अगस्त 1990 को हुआ।

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