मगध साम्राज्य की राजधानी राजगृह की सुरक्षा के लिए दुनिया की सबसे विशाल दीवार बनायी गयी थी। इसकी लंबाई 45 से 48 किलोमीटर है, जो पंचपहाड़ियों पर मौजूद है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की टीम ने रविवार को दीवार का अवलोकन किया। इसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट की सूची में शामिल कराने के लिए टीम आवश्यक दस्तावेज (डोसियर) तैयार करेगी
बिहार पुरातत्व विभाग के आग्रह पर एएसआई ने चहलकदमी बढ़ायी है। वर्ष 2009 से लेकर अबतक पांच बार पत्राचार किया जा चुका है। हाल में पुन: बिहार सरकार द्वारा दिये गये पत्र के आलोक में ईसा पूर्व पांच से 10सदी पहले बनायी गयी किलेबंदी की दीवार का अध्ययन शुरू कर दिया गया है। नालंदा म्यूजियम के पुरातत्वविद शंकर शर्मा व उनकी टीम ने कई किलोमीटर दीवार का जायजा लिया।
दीवार के बीच-बीच में प्लेटफॉर्म (बुर्ज) बनाये हैं, जहां सुरक्षा के लिए सैनिक तैनात रहते होंगे। पालि ग्रंथ के मुताबिक दीवार से आर-पार होने के लिए 32 बड़े तो 64 छोटे दरवाजे थे। दीवार का निर्माण राजा जरासंध के समय या उससे पहले किया जाना माना जाता है।
गजब की तकनीक
अधिकतर दीवारें माइसीनियन वास्तुकला की उदाहरण होती हैं। राजगीर भी इसमें शुमार है। माना जाता है कि ग्रीस का ‘साइक्लोप्स’ बहुत ही बलवान व्यक्ति था, जिसने माइसीन व टिरिन की दीवारों को बनाने के लिए बड़े-बड़े पत्थरों को एक-दूसरे पर सजाया। यही कारण है कि ऐसी दीवारों को साइक्लोपियन वॉल कहा जाता है। लेकिन, राजगीर की दीवार में खास खूबियां हैं। एक से दो मीटर आकार के अनगढ़ पत्थरों को सजाने में चूना-सुरकी व गारा अथवा अन्य चीजों का उपयोग नहीं किया गया है। बल्कि, कई पत्थरों में कीलनुमा निशान मिले हैं, जिनके सहारे वे एक-दूसरे को बांधे हुए हैं।
एएसआई इसे वर्ष 1905 से सुरक्षा दे रहा
एएसआई इसे वर्ष 1905 से सुरक्षा दे रहा है। यह दुनिया की प्राचीनतम दीवारों में शुमार है। एएसआई के अनुसार यह सिल्क रूट का हिस्सा भी रहा है। इसी का अनुकरण करके चीन ने चौथी-पांचवीं शताब्दी में महान दीवार का निर्माण कराया। ह्वेनसांग के साथ ही भारतीय पुरानों में भी राजगीर की दीवार की चर्चा है। रोम व यूनान में भी इतनी लंबी दीवार नहीं है।
पुरातत्व अधीक्षक गौतमी भट्टाचार्य ने कहा है कि बिहार सरकार के आग्रह पर राजगृह नगरी को अभेद्य दुर्ग बनाने वाली प्राचीर दीवार का फिर से अध्ययन कराया जा रहा है। विस्तृत अध्ययन के बाद दस्तावेज तैयार किया जाएगा। उसे यूनेस्को में शामिल कराने के लिए एएसआई के उच्चाधिकारियों को भेजा जाएगा।