बिहार में महापर्व छठ का विशेष महत्व है। लोक आस्था के इस पर्व से जुड़ी कई कहानियाँ और धार्मिक मान्यताओं में से एक मान्यता है की माता सीता ने पहला छठ बिहार के मुंगेर में गंगा तट पर किया था। आज भी इसकी गवाही के रूप में पत्थरों पर सीता जी के चरण चिन्ह मौजूद हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि दूर राज्यों के भी लोग यहां माँ सीता के चरणों के चिन्ह पर अपना शीश नवाने आते हैं और कोई भी श्रद्धालु यहाँ से खाली हाथ नहीं लौटता। सीताचरण का मंदिर इतना विख्यात है फिर भी इसके विकास की कोई पहल हुई।
मान्यताओं के अनुसार श्रीराम जब पिता की आज्ञा से वन के लिए निकले थे, तब वे सीता और लक्ष्मण के साथ मुद्गल ऋषि के आश्रम गए जहां सीता ने मां गंगा से वनवास की अवधि सकुशल बीत जाने की प्रार्थना की। फिर लंका विजय के बाद श्रीराम के आयोध्या लौटने पर उन्होंने राजसूय यज्ञ करने का निश्चय किया। परंतु वाल्मीकि ऋषि ने कहा कि बिना मुद्गल ऋषि के आए राजसूय यज्ञ सफल नहीं होगा।
इसके बाद माता सीता के साथ श्री राम मुद्गल ऋषि के आश्रम पहुंचे। ऋषि ने माता सीता को छठ व्रत करने की सलाह दी। उनकी सलाह पर माता सीता ने मुंगेर स्थित गंगा नदी में एक टीले पर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित कर पुत्र प्राप्ति की कामना की। मान्यताओं के अनुसार माता सीता ने जहां छठ पूजा किया, आज भी उनके पैरों के निशान वहां मौजूद हैं।
कालांतर में स्थानीय लोगों ने वहां एक मंदिर का बनवाया। हर साल गंगा की बाढ़ में डूब रहने वाला ये मंदिर सीताचरण मंदिर के नाम से विख्यात हुआ। श्रद्धालुओं की इस मंदिर व माता के पद चिन्ह पर गहरी आस्था है होने का एक कारण ये भी है की महीनों तक पदचिन्ह वाला पत्थर गंगा के पानी में डूबा रहने के बावजूद ये पदचिन्ह धूमिल नहीं हुए।