लोक आस्था का महापर्व छठ में मिट्टी के चूल्हे का विशेष महत्व होता है लेकिन अब यह चूल्हा विलुप्त होती जा रही है. लेकिन छठ महापर्व में इसकी खासी अहमियत है. पहले गांव की बुजुर्ग महिलाएं इन चूल्हों को बनाने में महारत हासिल कर रखी थी, लेकिन नए युग के लोगों में बहुत ही कम लोग ऐसे होंगे जो इस चूल्हे को बना पाते होंगे. आज भी बुजुर्ग महिलाएं छठ पर्व में छठी मैया के लिए बनने वाले प्रसाद स्वरूप पकवान के लिए इन मिट्टी के चूल्हों का निर्माण करती हैं. जिसको शहर में ले जाकर बेचती भी है.
चूल्हा बनाने में छठ के नियम का होता है पालन
चूल्हा बेचने आई आशा देवी ने कहा किपिछले वर्ष इस मिट्टी के चूल्हे की कीमत ₹50 थी. इस वर्ष ₹70 हुई हैं. इस चूल्हे को बनाने में कई सारी विधि और नियम का ध्यान रखना होता है. चाहे आप इस चूल्हे को बेचने के लिए ही क्यों ना बना रहे हो. अगर छठ के नियत से बना रहे हैं तो इसके जो नियम होते हैं उसे नियम के तहत लोग बनाते हैं. ऐसे ही आशा देवी बताती है कि खरना का प्रसाद इसी मिट्टी के चूल्हे पर बनता है.
इस चूल्हे के निर्माण के लिए तालाब से मिट्टी खोदकर सर पर उठाकर खाली पांव लाते हैं. तब जाकर इस चूल्हे का निर्माण होता है . बताते चले की खरना के प्रसाद के साथ छठ के अर्घ्य में चढ़ने वाले कई तरह के पकवान भी इसी मिट्टी के चूल्हे पर बनाए जाते हैं. क्योंकि यह शुद्ध माना जाता है. इसमें खासियत यह भी है कि आम की लकड़ी के जलावन ही जलेंगे या फिर गाय के गोबर से निर्मित गोइठा से ही पकवान बनाए जाएंगे