बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश व नेपाल के तराई क्षेत्रों में बड़ी धूम-धाम से मनाने जानेवाले छठ पर्व की धूम अब महाकौशल क्षेत्र में भी मचने लगी है। सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा जाता है।
छठ दरअसल षष्ठी का अपभ्रंश है जोकि लगातार चार दिनों तक चलता है। देशभर मे सन्तान की प्राप्ति के लिए महिलाएं और पुरुष इस त्यौहार को मनाते हैं। पर्व में सूर्यदेव की आराधना की जाती है।
विशेष बात यह है कि इस पर्व में डूबते हुये सूरज को भी अघ्र्य दिया जाता है। शहर के तालाबों और नर्मदाघाटों पर इस पर्व के लिए तैयारियां की जाने लगी हैं।
चार दिन का उत्सव छठ पर्व इस बार 24 अक्टूबर से शुरु होगा और 26 अक्टूबर तक मनाया जायेगा। 24 अक्टूबर मंगलवार का दिन पर्व स्नान और खाने का दिन है। 25 अक्टूबर बुधवार उपवास का दिन है जो 36 घंटे के उपवास के बाद सूर्यास्त के बाद समाप्त होगा।
26 अक्टूबर गुरुवार को संध्या अघ्र्य या संध्या पूजन के रूप में मनाया जाएगा। 27 अक्टूबर शुक्रवार को सूर्योदय में सूर्य को अघ्र्य देने के बाद पारान या उपवास खोला जाएगा।
सूर्य पूजन का है पर्व छठ का महात्म्य उर्जा के अक्षय स्रोत का भण्डार सूर्य देव की उपासना से है। सूर्य की पूजा करने से अनेक प्रकार के रोगों का शमन होता है। इसी के साथ सूर्यपूजन से पुत्र की कामना रखने वाले जातकों को विशेष फल मिलता है।
भगवान सूर्य प्रत्यक्ष देवता है, पेड़-पौधे, इन्सान, जानवर सूर्य की किरणों के बगैर जीवित नहीं रह सकती है। इस पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। इन चार दिनों में लहसुन-प्याज का प्रयोग वर्जित होता है।
कार्तिक शुक्ल चतुर्थी छठ पर्व का पहला दिन होता है जोकि नहाय खाय के रूप में मनाया जाता है। इस दिन देशी घी व सेंधा नमक से बना हुआ अरवा चावल और कददू की सब्जी को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
कार्तिक शुक्ल पंचमी का दूसरा दिन-लोहंडा और खरना को व्रत रखने के बाद शाम को भोजन ग्रहण करते है। इस दिन प्रसाद के रूप में गन्ने के रस में बने हुये चावल की खीर के साथ दूध, चावल का पिटठा और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इसमें नमक व चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है।
कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जायेगा। इस दिन प्रसाद के रूप में ठेकुआ और चावल के लडडू बनाए जाते हैं जिसे लडुआ भी कहा जाता है।
शाम को बॉस की टोकरी में अघ्र्य का सूप सजाया जाता है और व्रत के साथ परिवार के लोग अस्ताचलगामी सूर्य को जल में दूध मिश्रित अघ्र्य अर्पण करते है। चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को उषा अघ्र्य पर सुबह के समय उगते हुये सूर्य को अघ्र्य दिया जाता है और शाम को सूर्य को अघ्र्य देने के पश्चात दूध का शरबत पीकर व्रत तोड़ते है।