पूर्वजों के उपकारों का कर्ज उतारने वाले श्राद्ध पक्ष शुरू हो चुके हैं और जो 14 अक्टूबर तक चलेंगे. 16 दिनों तक चलने वाले श्राद्ध पक्ष को पितृ पक्ष भी कहा जाता है. मान्यता है कि पितृ पक्ष में पूर्वज धरती पर अपने वंशजों से मिलने के लिए आते हैं. ऐसे में पितरों के निमित्त तर्पण, श्राद्घ तथा पिंड बनाने की भी परंपरा है. लेकिन क्या आप जानते है? यह पिंड चावल के ही क्यों बनाए जाते है? और किस उंगली में कुशा पहनकर पितरों को तर्पण किया जाता है?
पंडित राजेश पाराशर ने बताया कि चावल की तासीर ठंडी होती है इसलिए पितरों को शीतलता प्रदान करने के लिए चावल के पिंड बनाए जाते हैं. चावल के गुण लंबे समय तक रहते हैं जिससे पितरों को लंबे समय तक संतुष्टि प्राप्त होती है. वैसे चावल के अलावा जौ, काले तिल आदि से भी पिंड बनाए जाते हैं. इसके अलावा ये भी मान्यता है कि चावल का संबंध चंद्रमा से माना गया है और चंद्रमा के माध्यम से ही आपके द्वारा दिया गया पिंड आपके पितरों तक पहुंचता है.
श्राद्ध के समय उंगली में क्यों पहनी जाती है कुशा?
पंडित जी के अनुसार गरुड़ पुराण में कुशा और दूर्वा का महत्व बताया गया है जिसमे दोनों में ही शीतलता प्रदान करने के गुण पाए जाते हैं. कुशा घास को बहुत पवित्र माना जाता है, इस पवित्री भी कहा जाता है. इसलिए श्राद्धकर्म करने से पहले पवित्रता के लिए हाथ में कुशा धारण की जाती है. मान्यता है कि कुशा को पहनने के बाद व्यक्ति पूजन कार्य करने के लिए पवित्र हो जाता है. इसलिए शास्त्रों में कर्मकांड के दौरान कुशा पहने जाने का जिक्र किया गया है.इससे व्यक्ति सहज रहकर श्राद्ध कर्म और तर्पण की प्रक्रिया को पूरा कर सकता है. इसलिए श्राद्ध के समय कुशा उसकी अनामिका उंगली में पहनाई जाती है.