जिद की दिशा यदि सकारात्मक हो तो बहुत कुछ दे जाती है। किसान अजय पांडेय इसके उदाहरण हैं। वे निकले थे बेटों के लिए शुद्ध दूध लाने, नहीं मिला तो खुद की डेयरी खड़ी कर ली। दर्जनभर लोगों को रोजगार दिया तो कई अन्य भी उनकी राह पर चल पड़े। इलाके के लोगों के लिए अब तो ये मिसाल बन गए हैं।
बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले के रामनगर स्थित छंगुरही बंजरिया गांव निवासी किसान अजय कहते हैं कि उनके दो पुत्र बाहर पढ़ते हैं। वे दीपावली में घर आए तो उनके लिए दूध की व्यवस्था करने के लिए मार्केट गए, लेकिन कहीं भी गुणवत्ता वाला दूध नहीं मिला। घर लौटे और निश्चय किया कि खुद की डेयरी शुरू करेंगे।
इस कहानी की शुरुआत वर्ष 2014 में हुई। उन्होंने एक गाय खरीदी और दूध का व्यापार शुरू किया। शुरुआती दिनों में मुश्किलें आईं, लेकिन परिश्रम से राह आसान होती गई। आज उनकी डेयरी में एक या दो नहीं, बल्कि 65 गायें हैं।
10 लोग काम करते हैं। उसी बाजार में वे प्रतिदिन 200 लीटर दूध की आपूर्ति करते हैं, जहां कभी उन्हें एक लीटर दूध के लिए भटकना पड़ा था। प्रतिमाह करीब पौने दो लाख का दूध बेचते हैं। कर्मचारियों को वेतन, चारा और दवा आदि में 60 से 70 हजार रुपये खर्च करने के बाद करीब एक लाख रुपये की आमदनी प्राप्त कर अजय रोल मॉडल बन गए हैं।
मिली प्रेरणा तो शुरू कर दिया व्यवसाय
अजय से मिली प्रेरणा से मुडि़ला गांव निवासी रतन यादव, जुड़ा पकड़ी निवासी रोहित कुमार, मुजरा गांव निवासी तनुज वर्मा और नुनिया पट्टी निवासी हरेंद्र ङ्क्षसह समेत आधा दर्जन लोगों ने डेयरी शुरू की है। ये सभी पशुपालक अच्छी आमदनी कर रहे हैं। प्रतिदिन दर्जन भर गांवों में ये व्यवसायी बाइक से दूध की आपूर्ति करते हैं। इनका कहना है कि यदि अजय ने शुरुआत नहीं की होती तो शायद हम आज भी बेरोजगार होते।
वर्मी कंपोस्ट प्लांट लगाने की तैयारी
डेयरी उद्योग में सफलता के बाद अब अजय वर्मी कंपोस्ट प्लांट लगाने की तैयारी में हैं। रासायनिक उर्वरक से मिट्टी की उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है। अजय क्षेत्र के किसानों को जैविक खाद की आपूर्ति करेंगे। उनका कहना है कि यदि सरकार मदद करे तो वे प्रति महीने कम से कम 50 क्विंटल जैविक खाद का उत्पादन करने में सक्षम हैं।
-डेयरी उद्योग में सफलता अर्जित करने वाले अजय की कहानी दूसरे पशुपालकों के लिए अनुकरणीय है। इससे लोग बेरोजगारी दूर कर सकते हैं।
-शंभूशरण सिंह, कृषि पदाधिकारी।