सद्भाव व भा ईचारे की मिसाल पेश करने वाला विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार उपलब्ध कराता है। बिहार के सुल्तानगंज से झारखंड के देवघर तक के 110 किलोमीटर लंबे कांवरिया मार्ग पर हजारों लोगों को रोजगार मिलता है। एक महीने के मेले की रोजी से हजारों परिवारों को साल भर तक रोटी मिलती है। ऐसे में विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेले का सुल्तानगंज के कई वर्गों के लोगों को महीनों पहले से इंतजार रहता है।

बड़ा है श्रावणी मेले का अर्थशास्त्र
श्रावणी मेले का अर्थशास्त्र काफी बड़ा है। एक माह तक चलने वाले इस मेले में लगभग 50 से 60 लाख शिव भक्त आते हैं। एक कांवरिया लगभग 500 से 1000 रुपये खर्च करता है। ऐसे में यहां लगभग तीन अरब रुपये से अधिक का कारोबार होता है। इसमें होटल, रेस्टोरेंट, कपड़ा, फोटोग्राफी, पंडा, कांवर, डिब्बा, पूजा-पाठ सामग्री, लाठी, अगरबत्ती आदि के व्यवसाय शामिल हैं, जिनकी तैयारी कई महीने पहले से होती है।

सावन से लेकर कार्तिक तक कांवर का धंधा चलता है। सैकड़ों अस्थायी दुकानें खुल जातीं हैं। एक माह में कांवर व्यवसाय में 50 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार होता है। मेले में डिब्बे (जलपात्र) की सैकड़ों दुकानें खुलती हैं। पूरे महीने में 10 करोड़ रुपये से अधिक का डिब्बे का व्यवसाय होता है।

चाय, नाश्ता व जूस आदि का एक दिन में लगभग 80 लाख से एक करोड़ रुपये तक का कारोबार होता है। लगभग 300 से 400 पंडा पूजा कराने पहुंचते हैं, जो पूरे महीने में अच्छी कमाई कर अपने घर जाते हैं। कपड़े का एक दिन में 30 लाख रुपये का करोबार होता है।

मेले में एक फोटोग्राफर लगभग एक से दो हजार रुपये कमा लेते हैं। 40 से 50 लाख कांवरिया एक माह में पूजा-पाठ सामग्री व अगरबत्ती आदि का 10 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार देते हैं। एक लाठी की कीमत 30 से 40 रुपये होती है। लाठी से पांच करोड़ का कारोबार होता है। इनके अलावा लगभग तीन करोड़ रुपये के पॉलीसीट बिकते हैं तो बोतलबंद पानी व कोल्ड ड्रिंक्स का एक दिन में 24 लाख रुपये तक का कारोबार होता है।

मुस्लिम परिवार तैयार करते हैं कांवर
श्रावणी मेला में सांप्रदायिक सौहार्द की भी मिसाल देखने को मिलती है। मुस्लिम समुदाय के लोग भी पूरी आस्था से कांवरियों के लिए कांवर बनाने और सजाने का काम करते हैं। सावन महीने में कई मुस्लिम परिवार सु्ल्तानगंज आकर कांवर बनाने का काम कर रहे हैं।

कांवरिया मार्ग के धौरी, जिलेबिया, सुईया आदि जगह मुस्लिम के अलावा आदिवासी समुदाय और ईसाई भी कांवरियों की सेवा में लगे रहते हैं।
Sources:-Dainik Jagran