बिहार के शहर वैशाली का इतिहास समृद्ध रहा है। भगवान महावीर और भगवान बुद्ध की विरासत यहां कदम-कदम पर मिलती है। वैशाली को विश्व का प्रथम लोकतंत्र भी कहा जाता है। इस पावन नगरी की महिमा का मंडन करने हुए राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था कि वैशाली जन का प्रतिपालक, गण का आदि विधाता! जिसे पूजता विश्व आज उस प्रजातंत्र की माता !! रूको एक क्षण पथिक इस मिट्टी पर शीश नवाओ ! राज सिद्धियों की समाधि पर फूल चढ़ाते जाओ !! वैशाली लाेकतंत्र की जननी, गणतंत्र की आदि भूमि, भगवान महावीर की जन्मभूमि, गौतम बुद्ध की कर्मभूमि होने के साथ ही प्रसिद्ध नृत्यांगना आम्रपाली की रंगभूमि भी है। वैशाली में हिंदू, बौद्ध, जैन और मुस्लिमों के कई ऐतिहासिक मंदिर और मजार हैं।
बुद्ध अस्थि कलश रैलिक स्तूप
ऐतिहासिक वैशाली की धरती पर यह प्रसिद्ध स्थल है, जहां से भगवान बुद्ध का अस्थि कलश प्राप्त हुआ था। यह स्थल रैलिक स्तूप वैशाली के नाम से प्रसिद्ध है। अभिषेक पुष्पकरणी के उत्तर हरपुर बसंत गांव में टीले की डा. एएस अल्तेकर के नेतृत्व में वर्ष 1958 में पुरातात्विक खुदाई से भगवान बुद्ध का पवित्र अस्थि अवशेष मिला था। यहां लोहे के खंभों और चादरों से स्तूप बना है।
यहां से प्राप्त भगवान बुद्ध का अस्थि अवशेष सुरक्षा के ख्याल से पटना के संग्रहालय में रखा गया है। अस्थि कलश को कुछ दिनों बाद वैशाली में ही बन रहे राष्ट्रीय संग्रहालय में लाकर रखा जाएगा। रैलिक स्तूप बौद्ध धर्मावलंबियों के साथ देसी-विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। यहां घेराबंदी के साथ ही रंगीन फूलों की क्यारियां सजाकर इसे आकर्षक लुक दिया गया है।
जापानी धर्मगुरु का विश्व शांति स्तूप
जापान के धर्मगुरु फुजिई गुरुजी की प्रेरणा से दुनिया का 71वां एवं सबसे ऊंचा विश्व शांति स्तूप वैशाली में बनाया गया है। इस स्तूप की आधारशिला 22 अक्टूबर 1983 को तत्कालीन राज्यपाल एआर किदवई ने पूज्य गुरुजी की उपस्थिति में रखी थी। वहीं 23 अक्टूबर 1996 को तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा ने इसका विधिवत उद्घाटन किया था। इसके बनने के बाद पर्यटकों का वैशाली आना बढ़ गया है। स्तूप के पूर्वी हिस्से में अति प्राचीन बौद्ध मंदिर है। इसकी स्थापना फुजिई गुरुजी ने कराई है। यहां सालों भर लोगों का तांता रहता है।
राष्ट्रीय बुद्ध सम्यक दर्शन संग्रहालय
वैशाली की पुरातात्विक खुदाई से प्राप्त भगवान बुद्ध का पवित्र अस्थि अवशेष वैशाली में ही रखे जाने को लेकर यहां 72 एकड़ के विशाल भूखंड में राष्ट्रीय बुद्ध दर्शन सम्यक संग्रहालय का निर्माण कराया जा रहा है। करीब 550 करोड़ की लागत से बन रहा इंटरनेशनल म्यूजियम वैशाली को विश्व के पर्यटन मानचित्र पर स्थापित करेगा।
भगवान बुद्ध का यह यह अस्थि कलश एकमात्र ऐसा अवशेष है, जिसे बौद्ध धर्म के लोगों ने प्रामाणिक माना है। संग्रहालय के निर्माण में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार स्वयं दिलचस्पी ले रहे हैं। वह अनेक बार निरीक्षण कर इसकी प्रगति का मानिटरिंग भी कर चुके हैं। यहां से करीब 17 किलोमीटर पूरब पटेढ़ी बेलसर के नगवां में स्थानीय युवक चितरंजन पटेल ने अपने स्तर से एकत्र किए पुरातात्विक वस्तुओं का संग्रहालय बनाया है।
भगवान महावीर जन्मस्थली बासोकुंड
जैन धर्म के 24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म वैशाली के कुंडलपुर वर्तमान बासोकुंड में 5061 ईसा पूर्व में राजा सिद्धार्थ के यहां हुआ था। भगवान महावीर की जन्म स्थली कुंड ग्राम में 23 अप्रैल 1956 को भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने एक स्मृति स्तंभ का शिलान्यास किया था। यह आज भी सुरक्षित है। जैन धर्मावलंबियों ने यहां एक विशाल मंदिर का निर्माण कराया है।
वर्तमान में इसकी पौराणिकता को नष्ट करने की कोशिश की जा रही हैं। कई जगह भगवान महावीर की जन्मस्थली होने का भ्रम फैलाया जा रहा है। भगवान महावीर की जन्मस्थली पर राष्ट्रीय स्तर का प्राकृत जैन शोध संस्थान भी संचालित है, जहां बड़ी संख्या में देशी-विदशी छात्र प्राकृत, पाली और जैन शास्त्र को लेकर शोध कार्य के लिए पहुंचते रहते हैं।
राजा विशाल का ऐतिहासिक गढ़
वैशाली में एक आयताकार ऊंचा टीला है, जिसे राजा विशाल के गढ़ के नाम से जाना जाता है। इसके चारों ओर गहरी खाई है। जेनरल कनिंघम ने इस खाई की चौड़ाई 60 मीटर बताई है। यहां पुरातत्व विभाग ने कई बार खोदाई कराई है, जिसमें टेराकोटा एवं धातु के अनेक पुरातात्विक वस्तुएं मिली हैं। इन चीजों को वैशाली संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है।
वर्ष 2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस स्थल को संरक्षित करने एवं चारों तरफ बाउंड्री बनाने का निर्देश दिया था। इसके बाद यहां आयोजित वैशाली महोत्सव का स्थान बदल दिया गया। चारों तरफ कंटीले तार से इसकी घेराबंदी करा दी गई। गढ़ के दक्षिणी भाग में एक मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। इतिहासकार एचबीडब्लू गैरिक ने वर्ष 1880-81 में इस मंदिर को देखा था। उनके अनुसार उस समय यहां धातु की 3 मूर्तियां थींं, जो बाद में चोरी हो गई। वर्तमान में यहां बगल के तालाब से खोदाई में ब्रह्मा जी की मूर्ति मिली थी, जिसे मंदिर में रखकर स्थानीय लोग पूजा-पाठ करते हैं।
बावन पोखर (बौना पोखर)
वैशाली गढ़ से पश्चिम एक पोखर है, जिसे बावन पोखर के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि भगवान राम अपने गुरु विश्वामित्र एवं अनुज लक्ष्मण के साथ जब जनकपुर जा रहे थे, उस समय यहां रात्रि विश्राम किया था। लोक मान्यता है कि भगवान वामन अवतार लेकर राजा बलि से यहीं पर तीन पग धरती मांगे थे। चतुर्भुजाकार तालाब की खोदाई में हिंदू देवी-देवताओं कई मूर्तियां मिली थीं। साथ में भगवान महावीर की भी काले पत्थर की एक मूर्ति मिली थी, जिसे जैन धर्म के लोग नया मंदिर बना कर पूजा-अर्चना करते हैं। यहां चैत रामनवमी को प्रति वर्ष तीन दिवसीय मेला लगता है। सन् 1861 में जब लार्ड कनिंघम आए थे, तो उन्होंने इस मेले को देखा था।
पौराणिक केतकी वन वैशाली
वैशाली गढ़ से सामने दक्षिण दाउदनगर में फूलों का एक बाग है, जिसे केतकी वन कहा जाता है। राजस्व खतियान में इसका नाम कोईली वन है। इसका रकबा 55 डिसमिल है। यहां के फूल बहुत ही सुगंधित होते हैं, लेकिन हिंदू पुराण के अनुसार केतकी भगवान शिव से श्रापित है। इसलिए पूजा-अर्चना में इसका प्रयोग नहीं होता है। वर्ष 2010 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस स्थल का निरीक्षण करने के बाद इसके संरक्षण का निर्देश दिया था, लेकिन अभी तक कोई प्रगति नहीं हो पाई है।
वैशाली का हरिकटोरा मंदिर
वैशाली गढ़ से पश्चिम एक ऐतिहासिक मंदिर है, जिसे हरि कटोरा मंदिर के नाम से जाना जाता है। यहां भगवान राम के साथ माता जानकी, भगवान भोलेनाथ के साथ मां पार्वती एवं भगवान कार्तिकेय की एक गुप्त कालीन मूर्ति स्थापित है। स्थानीय लोगों के अनुसार 1934-35 में यहां महान संत आए, जिन्हें लोग खाकी बाबा के नाम से आज भी जानते है। कहते हैं कि उन्होंने ही मंदिर का निर्माण कराया था। खाकी बाबा ने ही मीरन जी दरगाह पर हिंदू धर्मावलंबियों के साथ चैत्र शुक्ल पक्ष सप्तमी को चादर चढ़ाने की परंपरा शुरू की थी, यह परंपरा आज भी चल रही है। इनके देहावसान के बाद तापसी बाबा नामक एक संत यहां रहते थे। वर्तमान में यहां भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है और यहां एक प्राचीन कुआं भी है।
भीमसेन की लाठी अशोक स्तंभ
वर्तमान अशोक स्तंभ, जिसे कुछ साल पूर्व तक स्थानीय लोग भीमसेन की लाठी के नाम से जानते थे, यही पर है। कलिंग विजय के पश्चात जब सम्राट अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ तो उन्होंने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया एवं इसके प्रचार-प्रसार के लिए कई जगहों पर स्तंभ का निर्माण कराया था। जेनरल कनिंघम ने इस स्थल की खोदाई कराई थी। यहां अशोक स्तंभ के सिर पर सिंह की एक मूर्ति है, जो उत्तर मुख की ओर है।
तथ्य है कि जीएच बार्लो ने वर्ष 1780 एवं गणितज्ञ रिउवेन बरो ने वर्ष 1792 में इस स्थल का निरीक्षण किया था। कई जैन मुनि इसे भगवान महावीर का स्तंभ भी कहते हैं। भगवान महावीर की पहचान चिन्ह भी एक सिंह ही है। इस स्थल का विकास पुरातत्व विभाग की देखरेख में हुआ है। वर्तमान में यहां सौंदर्यीकरण कराया गया है।
कम्मन छपड़ा का चौमुखी महादेव
वैशाली के कम्मन छपरा में चौमुखी महादेव की मूर्ति है, जो सैंकड़ों वर्षों पहले ग्रामीणों को कुआं खोदने के क्रम में प्राप्त हुई थी। इसके बाद वर्ष 1945 में इस जगह की पुरातात्विक खोदाई कराई गई थी। इसमें चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के समय के एक सोने का सिक्का पाया गया था। वर्तमान में स्थानीय लोगों के सहयोग से यहां करीब 125 फीट ऊंचा भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है।
यहां सालों भर अनेक शुभ अवसरों पर श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं। शादी, उपनयन, मुंडन जैसे संस्कार होते हैं। श्रावण मास में प्रत्येक सोमवार को यहां लाखों श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं। मन से की गई पूजा करने वाले को मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
ऐतिहासिक मीरन जी की दरगाह
वैशाली में मीरन जी दरगाह हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। यहां एक ऊंचे टीले पर दरगाह और उसी के बगल में हनुमान जी की पिंडी है। यहां हर वर्ष चैत्र शुक्ल सप्तमी को एक साथ हनुमान जी का ध्वजारोहण और मजार पर चादरपोशी की जाती है। हिंदू एवं मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग पूजा-अर्चना और चादर चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं। यहां चैत्र रामनवमी पर तीन दिवसीय मेला लगता है।
यह मजार औलिया अल रहमत शेख काजिन शुतारी की है। मनेर में सन् 1434 में उनका जन्म हुआ था और वैशाली को अपना कर्मस्थली बनाकर धर्म का प्रचार किया था। वर्ष 1495 में इनकी मृत्यु पर दफनाया गया। सन् 2010 में वैशाली आए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी यहां आकर चादर चढ़ाई थी।