BU वैज्ञानिकों ने सुपर एब्जॉर्वेंट पॉलीमर पाउडर बनाकर किया कमाल, किसानों को सिंचाई के झंझट से मिलेगा छुटकारा

जानकारी प्रेरणादायक

बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BU) ने एक ऐसा कमाल किया है कि अब किसानों के झोले में जल होगा। जी हां, बीयू के वैज्ञानिकों ने इसे सच कर दिखाया है। इसके सहारे बंजर और ऊंची जमीन पर भी आसानी से फसल उगाई जा सकेगी।

बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर ने एक ऐसा पॉउडर बनाया है, जो तीन माह तक फसलों को सिंचित करता रहेगा। यह पाउडर पौधों को नाइट्रोजन भी देगा। इस प्रौद्योगिकी को भारत सरकार ने पेटेंट देकर इसकी गुणवत्ता पर मुहर लगा दी है।

सिंचाई के झंझट से मिलेगी राहत

अब तक किसानों को ऐसी जमीन पर खेती करने में परेशानी होती थी, जहां पानी नहीं टिकता था। अब इस नए शोध से फसलों को पानी की कमी नहीं होगी। पाइप व नाले के सहारे खेतों तक पहुंचाया जाने वाला जल अब ठोस रूप में किसानों को उपलब्ध होगा।

एन सुपर एब्जार्बेट पालीमर पावडर। जागरण फोटो

दिनों-दिन कम होती वर्षा और नीचे गिरते भूगर्भ के जलस्तर के कारण सिंचाई बहुत बड़ी समस्या बन गई है। इस बार ही मानसून की शुरुआत में कम वर्षा होने से बिहार में सुखाड़ की आशंका गहराने लगी थी। हालांकि, बाद में हुई वर्षा ने किसानों की चिंता कुछ हद तक दूर कर दी। ऐसे में बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई यह प्रौद्योगिकी एक वरदान होगी।

भारत सरकार से मिला 20 साल का पेटेंट

इस खोज को एनएसपी (एन सुपर एब्जार्बेट पॉलीमर) नाम दिया गया है। भारत सरकार से इसे 20 साल के लिए पेटेंट मिल गया है। अब तक इस प्रकार की खोज देश में कहीं नहीं की गई है। विश्वविद्यालय के मृदा और कृषि रसायन विज्ञान विभाग के विज्ञानी डॉ. निंटू मंडल इसके जनक हैं।

एन सुपर एब्जार्बेट पालीमर पावडर। जागरण फोटो

किसान कैसे करेंगे इसका उपयोग

डॉ. निंटू मंडल बताते हैं कि यह पावडर रबी फसलों, खासकर गेहूं, चना व मसूर के लिए बनाया गया है। ऐसे, किसी भी फसल में इसका प्रयोग किया जा सकता है।

गेहूं की फसल की किसानों को बार-बार सिंचाई करनी पड़ती है। कम से कम तीन बार तो इसमें सिंचाई की ही जाती है। ऐसे में एनएसपी पावडर को 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज में मिलाकर बोआई करनी है।

उन्होंने आगे बताया कि एक बार 21 दिन के बाद फसल की सिंचाई कर देनी है। इसके बाद फसल की सिंचाई की आवश्यकता नहीं है। फिर यह पावडर पौधों को 90 दिनों तक सिंचित करता रहेगा।

इसी प्रकार, ऊंची और बंजर भूमि पर फसल उगाने में भी इस पावडर का प्रयोग किया जा सकता है। फसलों को मात्र एक बार सिंचित करना होगा। इसके साथ ही यह 15 प्रतिशत तक पौधों को नाइट्रोजन की आपूर्ति भी करेगा। पिछले एक दशक के प्रयास में यह सफलता मिली है।

कैसे होगा किसानों को लाभ

बहुत जल्द इसका व्यावसायिक उत्पादन शुरू होगा। विश्वविद्यालय कई संबंधित संस्थानों से बात कर रहा है। उर्वरक आदि के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काम कर रहे राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय संस्थानों के साथ बीएयू, सबौर अपनी तकनीक साझा करेगा। इससे बड़े पैमाने पर इस एनएसपी का उत्पादन हो सकेगा। इससे बीएयू को आय भी होगी और किसानों को भी लाभ मिलेगा।

एन सुपर एब्जार्बेट पालीमर पावडर (पैकेजिंग के साथ)। जागरण फोटो

जलवायु परिवर्तन के कारण कम और असमय होती बारिश में एनएसपी वरदान बनेगा। आने वाले समय में इसका व्यावसायिक उत्पादन भी किया जाएगा। विश्वविद्यालय इसके लिए प्रयास कर रहा है। यहां के विज्ञानी ने ऐसी प्रौद्योगिकी का विकास कर दिया है, जिससे राज्य ही नहीं, देश गौरवान्वित हो रहा है।

डॉ. दुनियाराम सिंह, कुलपति, बीएयू सबौर

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