कभी बिहार में निचले तबके के गरीब लोगों का भोजन हुआ करता था सत्तू, जिसकी सोंधी महक अब विदेशों तक पहुंच गई है। बिहार का लिट्टी-चोखा जिसके स्वाद की दुनिया दिवानी है उसके भरावन में सत्तू का ही इस्तेमाल होता है।सत्तू गर्मियों के मौसम के लिए वरदान है, जिसका प्रयोग आप कहीं भी, कभी भी कर सकते हैं।बिहार के जो लोग विदेशों में रहते हैं, वे वहां के लोगों को भी इसका स्वाद चखा दिया है इसीलिए विदेशों से आने वाले लोग भी सत्तू की डिमांड जरूर करते हैं। दक्षिण कोरिया के शहर चुन चीआन की निवासी ग्रेस ली करीब 20 साल पहले बिहार आ कर बस गईं। यहां के सत्तू की वह खुद दीवानी हो गईं और बाद में अपने कोरियाई दोस्तों को इसका दीवाना बनाया।
बिहार के सत्तू की बात कुछ खास हैं क्योंकि यहां चने का सत्तू, मकई का सत्तू, जौ का सत्तू, कुरथी का सत्तू इतनी वेरायटीज मिलती हैं। इसे आप किसी रूप में प्रयोग कर सकते हैं।
लेकिन मजदूर तबका तो बस गमछा बिछाता है, सत्तू डालता है, कच्चा प्याज, हरी मिर्च और नींबू निचोड़कर पानी मिलाकर सत्तू के गोले तैयार कर उसे भरपेट खाकर पानी पीकर काम पर निकल जाता है।गर्मी में प्यास ज्यादा लगती है और इसके लिए हम पानी से लेकर जूस, शरबत आदि का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं।
ऐसे में सत्तू आपके लिए एक विकल्प हो सकता है। यह पेट के लिए बहुत ही लाभदायक होता है। इसमें लो ग्लाईसेमिक इंडेक्स होते हैं जिस कारण यह डायबिटीज के रोगी के लिए अच्छा माना जाता है।