एक बिहारी आईपीएस जिन्होंने शास्त्रीय संगीत में भी अपना परचम लहराया

कही-सुनी

सीनियर आईपीएस ऑफिसर और एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) आलोक राज को जो लोग करीब से जानते हैं, वह उनके संगीत के लगाव से भी परिचित होंगे।

अपनी बेहद ही व्यस्त दिनचर्या के बीच वह संगीत के लिए वक्त निकाल ही लेते हैं। शहर में शास्त्रीय संगीत से जुड़ी कोई भी बड़ी महफिल हो उन्हें वहां देखा जा सकता है, कई बार तो कई बड़े गायक गा रहे हों तो वह पीछे की सीट पर भी बैठ कर उन्हें सुनते नजर आएंगे।

भारतीय पुलिस सेवा के किसी अधिकारी का संगीत के प्रति यह लगाव शायद ही कहीं देखने को मिले। अपनी पुलिस की नौकरी में कई बड़ी उपलब्धियां हासिल कर चुके आलोक राज के गाए भजनों का अलबम हाल में साई अर्चना के नाम से आया है।

सुर और ताल से जुड़े इनके इसी लगाव को जानने के लिए हम पहुंचे इनके आवास और जाना संगीत के उनके सफर के बारे में। मिलते ही पहला सवाल पूछा कि एक पुलिस अधिकारी का संगीत से यह लगाव कैसे हुआ? सवाल के जवाब में बेहद ही सौम्य अंदाज में मुस्कुराते हुए वह कहते हैं कि स्कूल, कॉलेज के दिनों में तो शौकिया तौर पर फिल्मी गीतों को गाता था। नौकरी में आने के बाद यह सब छूट गया।

इसी बीच जब केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल में बतौर डीआईजी रांची में प्रतिनियुक्त था, तब सीआरपीएफ की ओर से होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में थोड़ा-बहुत गाने लगा। अंदर सोई हुई कला ने एक बार फिर दस्तक दी। फिर जब वापस 2012 में पटना आया और आईजी होमगार्ड के पद पर था उसी दौरान परिवार और नौकरी से थोड़ा समय निकालकर शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरू की।

नौकरी के 23 साल के बाद मैंने विधिवत रूप से हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू किया, सौभाग्य से मुझे अशोक कुमार प्रसाद के रूप में अच्छे गुरु भी मिल गए। पांच साल से नियमित संगीत सीख रहा हूं।

वह कहते हैं कि संगीत के इस सफर में मैंने गुरुजी के साथ मिलकर कोशिश की कि अच्छे हिन्दी कवियों, उर्दू शायरों को नए पुकार से नई धुनों से और नए अंदाज में प्रस्तुति की जाए।
गुरु जी नए धुन बनाते हैं जो कि शास्त्रीय रागों पर आधारित होने के कारण सुरीली भी होती है और मैं इसमें स्वर देता हूं। हम लोग जल्द ही गोपाल दास नीरज, गोपाल सिंह नेपाली जैसे कवियों के गीतों को और उर्दू में बशीर बद्र, निदा फाजली जैसे शायरों के कलाम को नए अंदाज में पेश करना चाहते हैं।

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