बिहार में सदियों पहले से हो रही वनदेवी की पूजा, जानें किस जिले में कौन सा समाज निभा रहा यह परंपरा

आस्था जानकारी

सदर प्रखंड स्थित सोनवर्षा गांव के बगीचे में खरवार-बहरवार समाज के लोगों ने हर्षोल्लास के साथ वनदेवी का वार्षिक पूजन किया. इसके लिए आम के बगीचे में वनदेवी का पिंडी बनाया गया था. जहां खरवार समाज के पुरोहित संत जनार्दन दास के द्वारा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा कराया गया.  इसके अलावा बगीचे में लगे सभी वृक्षों का भी पूजन किया गया. वनदेवी पूजा समिति के अध्यक्ष परमानन्द ने बताया कि प्राचीन काल से वनदेवी की पूजन का परंपरा चली आ रही है. जिसका निर्वहन खरवार-बहरवार समाज के लोग आज भी कर रहे हैं.

उन्होंने बताया कि इस मौके पर न केवल पुराने वृक्षों की पूजा की जाती है, बल्कि नए पौधे भी लगाए जाते हैं. उन्होंने बताया कि वनदेवी की वार्षिक पूजा हर साल श्रावण माह में हीं होता है. इस अवसर पर भंडारे का भी आयोजन किया जाता है.शिक्षक संतोष कुमार खरवार ने बताया कि वन देवी की पूजा के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया जाता है. लोगों ने पर्यावरण की रक्षा का संकल्प लेते हुए कहा कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हम एक सुंदर पर्यावरण का उपहार उन्हें प्रदान करें. यह हमारा नैतिक कर्तव्य है.

पौधरोपण है जरूरी
उन्होंने बताया कि भागदौड़ भरे इस जमाने में लोग परंपरागत मान्यताओं को भूलते जा रहे हैं. जिसके कारण हमारे संस्कारों के साथ-साथ हमारे परिवेश को भी काफी क्षति पहुंच रही है. वनों की अंधाधुंध कटाई, नए पौधे न लगाए जाने तथा कल कारखानों से निकलने वाले धुएं के प्रदूषण से देश की राजधानी दिल्ली समेत कई प्रमुख शहरों में भी बेहद खराब हालात पैदा हो जा रहे हैं. इससे बचाव तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए उपस्थित लोगों को पौधरोपण को नितांत जरूरी बताया.

वनदेवी की पूजा की परंपरा 
विजय खरवार ने बताया कि वनदेवी की पूजा उनके पूर्वज वैदिक काल से ही करते आ रहे हैं. इसी का निर्वहन सभी मिलकर कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि संप्रदाय के लोग पहले जंगलों, वनों, गिरी, कंदराओं में निवास करते थे. जहां संस्कृति का निर्वहन करते हुए आराध्य देवी के रूप में वन देवी की पूजा की जाती थी. जिसे प्रकृति को ऊर्जा के स्त्रोत के रूप के पूजते थे. उसी को निभाते हुए खरवार समाज को एकजुट होकर अपनी परंपरा का निर्वहन करने का आह्वान किया गया.

 

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