बिहार की स्कूली शिक्षा में बड़े स्तर पर सुधार की पहल हुई है। इसकी वजह है-दो दिन पहले सरकार ने बिहार राज्य शिक्षक नियमावली 2023 को लागू किया है, इसके दूरगामी परिणाम सामने आएंगे। खासकर वर्तमान में शिक्षकों की गुणवत्ता पर उठ रहे प्रश्नों का भी समाधान होगा।
बिहार के विद्यालयों के शिक्षण और प्रबंधन कार्य में सुधार आएगा। कई शिक्षाविदों ने भी स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए सरकार के इस फैसले को सराहा है। राज्य के 71,863 प्रारंभिक और 9,360 माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों की नई भर्ती प्रक्रिया के अमल में आने से स्कूली शिक्षा में न सिर्फ गुणात्मक सुधार आएगा, बल्कि विद्यालय प्रबंधन मामले में भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा।
दरअसल, लंबे अरसे से योग्य शिक्षकों की नियुक्ति बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से कराने की मांग उठती रही है। पुरानी नियमावली के चलते यह संभव नहीं था। नई नियमावली के प्रभाव में आते ही राज्य में 3 लाख 19 हजार पदों पर आयोग द्वारा शिक्षकों नियुक्ति की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है। आयोग से शिक्षकों की यह नियुक्ति तीन दशक के बाद दोबारा होगी।
पुरानी नियमावली से शिक्षकों की नियुक्ति में सरकार की भूमिका सीमित थी। कुल 9,222 नियोजन इकाईयों के माध्यम से बिना लिखित परीक्षा शिक्षकों के 3 लाख 52 हजार पदों पर नियुक्ति हुई थी। योग्यता के लिहाज से शिक्षक अभ्यर्थियों के लिए उनके शैक्षणिक और प्रशैक्षिक अंक पत्रों के आधार पर मेरिट लिस्ट ही मानक मात्र था।
इसमें बड़ी संख्या में अयोग्य शिक्षक भी बहाल हो गए, जो आज भी बिहार सरकार के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। सरकार अयोग्य शिक्षकों को चाह कर भी सेवा से विमुक्त नहीं कर पा रही है। नई नियमावली से विद्यालयों को योग्य शिक्षक मिलने की उम्मीद है।
कानूनी पेंच फंसने की आशंका
नई नियमावली को शिक्षा में बड़े सुधार को ध्यान में रखकर लागू की गई है, लेकिन इसे प्रभावी तरीके से लागू करने में कई व्यवहारिक दिक्कतें आ सकती हैं। मसलन, अब तीन कैडर के शिक्षक होंगे। 2006 से पूर्व से कार्यरत 60 हजार शिक्षक और इसके बाद नियोजन प्रक्रिया से तैनात 3 लाख 52 हजार शिक्षक का कैडर अलग-अलग है।
आयोग से नियुक्त होने वाले शिक्षकों का जिला कैडर होगा। इनके लिए सेवा शर्तें भी अलग-अलग होंगी, जिसे नियंत्रित करने के लिए प्रशासनिक कुशलता दिखानी होगी।