माधवेश्वर मंदिर परिसर
बिहार का दरभंगा जितना ऐतिहासिक है, उतना ही उपेक्षित भी। इसके बावजूद पुराने और महत्वपूर्ण शहर होने के नाते यहां पहुंचना बेहद सुगम है। 1938 से ही यहां एयरपोर्ट तैयार है (जो 1963 तक सेवरत्त था और तत्पश्चात वायुसेना के अधीन। आम जनों के लिए सेवा पुनः शुरु होनेवाली है जिसपर आधा से ज्यादा कार्य हो चुका है)। ध्यातव्य है कि 1874 से ही यह शहर रेलमार्ग से जुडा हुआ है। राजधानी दिल्ली समेत सभी महत्वपूर्ण जगहों के लिए यहां से सीधी ट्रेनें है। राजधानी पटना से करीब तीन घंटे का सफर तय कर ईस्ट वेस्ट कोरिडोर (एनएच 57) के रास्ते आप दरभंगा तक पहुंच सकते है।
शहर के मुहाने पर ही आपको एहसास हो जायेगा कि आप एक ऐसे शहर के अंदर जा रहे हैं, जो ठहरा हुआ है। अपने अतीत को ढोता हुआ किसी तरह जिंदा है। महलों और मंदिरों के खंडहरों के बीच से आ रही आवाज आपको उस परिसर की ओर ले जायेगी, जहां मृत्यु एक सत्य है। भारत धर्म महामंडल के अध्यक्ष रहे महाराजा रमेश्वर सिंह की करीब 22 फुट ऊंची इटेलियन मार्बल की विशाल प्रतिमा के सामने से गुजरते हुए जब आप उस परिसर में दाखिल होंगे तो धर्म, दर्शन और आध्यात्म की एक अलग ही दुनिया से आपका परिचय होगा। आप एक ऐसे शमसान की ओर बढ़ते जायेंगे जहां का महौल गम भरा नहीं, बल्कि उत्सवी दिखेगा। इस श्मशान स्थल के कण-कण में जीवन का दर्शन छुपा है। परिसर के मुख्य दरवाजे से सटा उजले रंग के गोल आकार का मंदिर इस परिसर का सबसे पुराना मंदिर है। भौडागढी से तिरहुत की राजधानी दरभंगा लाने के बाद महाराजा माधव सिंह ने शिव और शिवा दोनों को यहां स्थापित किया था। इस कारण ही इस महादेव को माधवेश्वर महादेव और परिसर को माधवेश्वर नाम से पुकारा जाता है। हालांकि कालांतर में परिसर की पहचान इसमे स्थित श्यामा मंदिर से भी बढ़ी है, सो लोग पूरे स्थल को ‘श्यामा माई मंदिर’ नाम से भी पुकारने लगे हैं।
माधवेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी हेमचंद्र झा कहते हैं कि माधेश्वर शिव मंदिर ही इस परिसर में एकमात्र मंदिर है, जो किसी की चिता पर नहीं है। माधेश्वर नाथ महादेव को छोड़कर इस परिसर में बने अन्य मंदिरों में देवियों की प्रतिमाएं हैं, जिनका चयन साधकों की इष्ट के आधार पर किया गया है।यह संयोग ही कहा जाये कि महाराजा माधव सिंह का निधन दरभंगा में नहीं हुआ, इसलिए उनकी चिता भूमि इस परिसर में नहीं है, लेकिन महाराजा माधव सिंह का अस्थि कलश महादेव मंदिर के आगे रखा हुआ है। राज परिवार के पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार से पूर्व इस कलश के पास रखने की परंपरा है। परिसर में सबसे पुरानी चिता के संदर्भ में श्री झा कहते हैं कि माधव सिंह के पुत्र महाराजा छत्र सिंह का निधन भी काशी में हुआ, इसलिए उनकी चिता भी यहां नहीं सजी। परिसर में चिता भूमि पर बने सबसे पुराने मंदिर रुद्रेश्वरी काली की है, जो महाराजा माधव सिंह के पोते महाराजा रुद्र सिंह की चिता भूमि पर है।यह संयोग ही कहा जाये कि महाराजा माधव सिंह का निधन दरभंगा में नहीं हुआ, इसलिए उनकी चिता भूमि इस परिसर में नहीं है, लेकिन महाराजा माधव सिंह का अस्थि कलश महादेव मंदिर के आगे रखा हुआ है। राज परिवार के पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार से पूर्व इस कलश के पास रखने की परंपरा है। परिसर में सबसे पुरानी चिता के संदर्भ में श्री झा कहते हैं कि माधव सिंह के पुत्र महाराजा छत्र सिंह का निधन भी काशी में हुआ, इसलिए उनकी चिता भी यहां नहीं सजी। परिसर में चिता भूमि पर बने सबसे पुराने मंदिर रुद्रेश्वरी काली की है, जो महाराजा माधव सिंह के पोते महाराजा रुद्र सिंह की चिता भूमि पर है।