बिहार के बक्सर जिला के डुमरांव नगर के दक्षिणी-पूर्वी छोर पर काव नदी के किनारे मां डुमरेजनी का विख्यात मंदिर स्थित है. इसका इतिहास 500 साल से भी पुराना बताया जाता है. यहां मनौतियों के साथ मां के दरबार में हाजिरी लगाने वाले भक्तों की न सिर्फ झोली भरती है, बल्कि माता आज भी सतीत्व की रक्षा करने का संदेश देती है. इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है बल्कि, भस्म हुई माता की राख और मिट्टी की ढेर है. यहां दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु मिट्टी की पिंडी का आराधना करते हैं.
इस मंदिर की खासियत है कि यहां पूरे साल शादी-विवाह होता है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि खरमास के दौरान कोई भी मांगलिक कार्य नहीं कर सकते, लेकिन मां डुमरेजनी के स्थान पर खरमास हो या लग्न हर मौसम में शादी-ब्याह होता है. यह भी मान्यता है कि माता के दरबार में शादी करने वालों पर कोई दोष नहीं लगता है. ऐसा मां का प्रभाव है. इस स्थान को लेकर ऐसी भी मान्यता है कि यदि कोई दिल से माता से कुछ मांगे, तो उसकी मन की मुराद पूरी होती है. यह मंदिर घने पेड़ों से घिरा है और आबादी से अलग है. हर दिन बड़ी सख्या में श्रद्धालु यहां पूजा-अर्चना के लिए आते हैं.
सतीत्व की रक्षा के लिए मां डुमरेजनी ने खुद को किया था भस्म
मंदिर के व्यवस्थापक सह पुजारी ब्रिज कुमार राय ने बताया कि मां डुमरेजनी के दरबार में उत्तरप्रदेश, बिहार के अलावे कई शहरों से श्रद्धालु आते हैं और अपनी मन्नते मांगते हैं. उन्होंने बताया कि लगभग 500 वर्ष पहले डुमरांव घने जंगलों से घिरा हुआ था. उस वक्त सड़कें नहीं थी. काव नदी और जंगलों के बीच से रास्ता भोजपुर घाट होते हुए उतरप्रदेश को जोड़ता था. इसी रास्ते पर चेरो का किला था. चेरों का इस इलाके में आतंक था. लूटमार उनका पेशा हुआ करता था.
उन्होंने बताया कि डुमरांव प्रखंड के अरैला गांव के कौशिक गोत्रीय ब्रह्मण परिवार में डुमरेजनी का जन्म हुआ था. उनकी शादी उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिला के ताजपुर गांव के द्रोणवार ब्रह्मण रामचंद्र पांडेय से हुई थी. विदाई करा कर रामचंद्र घोड़े पर सवार होकर इसी रास्ते से गुजर रहे थे. पीछे डुमरेजनी की डोली चल रही थी. जैसे ही वो चेरो के इलाके में पहुंचे. चेरो ने लूट की नीयत से उन पर हमला बोल दिया. पति के साथ डुमरेजनी भी चंडी का रुप धारण कर भिड़ गईं. पति के गिरते ही डुमरेजनी का हौसला जवाब देने लगा. डुमरेजनी ने सतीत्व की रक्षा के लिए अपने आप को भस्म कर लिया. नारी शक्ति का यह रूप लोगों के बीच चर्चा का केंद्र बन गया.
मंदिर में उमड़ता है आस्था का जनसैलाब
पुजारी ब्रिज कुमार राय ने बताया किउस घटना के कुछ समय बाद माता का प्रभाव इलाके में दिखने लगा. चेरो का सम्राज्य भी माता की दृष्टि के कारण खत्म हो गया. लगभग 19 वीं सदी के उतराद्ध में दक्षिण टोला के कुछ लोगों के प्रयास से पूजा-अर्चना शुरू हुई. पहले माता का छोटा मंदिर बना. लोगों का मंदिर में आना-जाना शुरू हुआ. लोगों में माता के प्रति आस्था बढ़ती गई. माता की कृपा से रीवा नरेश रमण सिंह को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. संतान के रुप में मनौती पूरा होने पर वर्ष 1898 में महारानी ने भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था. उसके बाद से आस्था का जो जन सैलाब उमड़ा, उसका कदमताल आज भी बदस्तूर जारी है