कहलगांव प्रखंड श्यामपुर पंचायत के जानमुहम्मदपुर ड्योड़ी में वर्ष 1836 से प्रतिमा स्थापित की जा रही है। यहां माता सिद्धेश्वरी स्वरूप मां काली की पूजा बंगला पद्धति से की जाती है।
यह काफी शक्तिशाली है। कहा जाता है कि सच्चे मन से मांगी गई मुरादें यहां पूरी होती है। बंगाल से ही पूजा करने के लिए पंडित लाए जाते हैं। गत बीस वर्षों से रामनाथ चक्रवर्ती पूजा के आते हैं।
पूजा संपन्न होने पर वापस लौट जाते हैं पंडित
पूजा संपन्न होने के बाद चले जाते हैं। यहां अमावस्या के दूसरे ही दिन शाम में प्रतिमा विसर्जित कर दी जाती है। मेला भी लगता है। बंगाल से आए जमींदार राधा चरण गांगुली ने अपने घर पर मंदिर की स्थापना कर प्रतिमा स्थापित की थी।
तब से एक ही रूप में प्रतिमा स्थापित की जा रही है। जमींदार का मकान सह मंदिर जर्जर हो गया है। राधा चरण के पौत्र विद्युत कुमार गांगुली पूजा के दौरान स्वयं यजमान के रूप में बैठते थे। अपने सीने को चीरकर खून चढ़ाते थे।
बकरे की बलि
गांगुली परिवार के पांचवी पीढ़ी पूजा कर रही है। प्रदीप कुमार गांगुली ने बताया कि पहले पांच काला पाठा बकरे की बलि परिवार की ओर से दी जाती थी। उसके बाद श्रद्धालु बकरे की बलि देने लगे थे। हालांकि, अब बलि प्रथा बंद कर दी गई है।
अभी सूर्यकोड़ा, परोल, ईख की बलि दी जाती है। गांगुली परिवार ने श्री नारायण जी, मां काली के नाम से 22 बीघा जमीन निजी ट्रस्ट बनाकर अर्पणनामा कर दिया था। ताकि मंदिर की व्यवस्था, पूजा अर्चना में कोई दिक्कत नहीं हो।
पिछले चालीस सालों में क्या हुआ?
पिछले चालीस साल से मंदिर की स्थिति काफी बदतर होने और जमीन बिक्री होते देख स्थानीय लोगों ने मंदिर की सुरक्षा के लिए आवाज उठाने लगा था। गांगुली परिवार कलकत्ता में रहते हैं। नियमित पूजा नहीं होती है।
ग्रामीण रणवीर सिंह, रामस्वरूप शर्मा, राजपति शर्मा, विंदेश्वरी झा ने बताया कि लंबी कानूनी लड़ाई के बाद बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद में गांगुली परिवार एवं ग्रामीणों के बीच समझौता हुआ कि मंदिर सार्वजनिक हो चार बीघा जमीन दी गई है। न्यास पर्षद बोर्ड का गठन हुआ है। यहां के मां काली की बहुत दूर दूर तक ख्याति है।