बिहार के इस बौद्धकालीन मंदिर की छत आज तक नहीं ढाली जा सकी, वजह है बेहद चौंकाने वाली

जानकारी

मठ और मंदिरों को लेकर कई अविश्वसनीय कहानियां और घटनाएं आपने सुनी होंगी. ऐसी ही एक कहानी है मुजफ्फरपुर के बौद्धकालीन मंदिर की. हालांकि यह कहानी नहीं, बिल्कुल सच है. इस मंदिर की छत आजतक नहीं ढाली जा सकी है. जब भी मंदिर की छत ढालने का प्रयास किया गया, तो कोई न कोई अनहोनी हो गई.

जी हां, मुजफ्फरपुर के पश्चिम में मड़वन प्रखंड के बड़कागांव में जंगली महादेव का बेहद प्राचीन मंदिर है. यहां आने पर आपको मंदिर के चारों ओर बौद्धकालीन कुआं, ईंटों पर ब्रह्मलिपि में अंकित आलेख और फूस की छत देखने को मिलेंगे.

फूस के घर में जंगली महादेव

सावन की प्रत्येक सोमवारी को हजारों की संख्या में श्रद्धालु जंगली महादेव का जलाभिषेक करते हैं. सावन में श्रद्धालुओं की भीड़ को संभालने के लिए प्रशासन द्वारा बैरिकेडिंग की जाती है. साथ ही पुलिस बल व स्वयंसेवकों की भी तैनाती की जाती है. जंगली महादेव मंदिर में फूस की छत लोगों के अचंभा का कारण बनी रहती है. इस मंदिर के ऊपर गुंबद नहीं है. मंदिर आज भी फूस का ही है. इसके ऊपर कभी छत नहीं बन सका. इसपर स्थानीय आलेख अंकित है. लोगों का मानना है जब यहां छत का निर्माण होना शुरू होता है, तो कोई न कोई अनहोनी हो जाती है. या तो छत टूट जाती है या मंदिर के ऊपर चढ़े मजदूर नीचे गिर जाते हैं

बौद्धकालीन मंदिर

इतिहासकारों की नजर में भी इस मंदिर के ठीक सामने पोखर है, जो आकर्षण का केंद्र है. आसपास के लोगों और बुजुर्गों का कहना है कि बौद्धकाल और अंग्रेजों के शासनकाल में भी पूजा-अर्चना के लिए यहां लोगों की भीड़ उमड़ती थी. मंदिर के प्रधान पुजारी के बड़े पुत्र बलराम तिवारी ने लोकल 18 से बताया कि मंदिर के चारों ओर ऐतिहासिक बौद्धकालीन पांच कुआं है. इसकी सभी ईंटों पर ब्रह्मलिपि में लिखा हुआ है. साथ ही इस मंदिर की छत कभी नहीं ढल पाई. इस बाबा का नाम जंगली महादेव है. इसलिए बाबा भी चाहते हैं कि फूस में ही रहें. बलराम तिवारी बताते हैं कि इतिहासकार सच्चितानंद चौधरी व दिल्ली के इतिहासकार कैशर शमीम ने शोध कर इस मंदिर को बौद्धकालीन बताया है. उनका कहना है धर्मालिंगन रुपया का प्रतीक चिन्ह इसी जगह के कुंआ से लिया गया है.

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