पूरा देश 15 अगस्त को 77वां स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी में जुटा हुआ है। इस दौरान हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जहांं 16 अगस्त को भी स्वतंत्रता दिवस का पालन किया जाता है। जी हां, हम यहां बात कर रहे हैं बिहार के बक्सर स्थित डुमरांव की, जहां जश्न-ए-आजादी 16 अगस्त को भी मनाया जाता है।
16 अगस्त के कार्यक्रम को राजकीय समारोह का दर्जा प्राप्त
15 अगस्त के साथ-साथ 16 अगस्त को भी यहां आयोजित कार्यक्रमों की तैयारियां बहुत पहले से की जाती है। 16 अगस्त की सुबह प्रभातफेरी से कार्यक्रमों का दौर शुरू होता है और देर रात सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ संपन्न होता है। डुमरांव के लोगों की ही मांग पर सात साल पहले बिहार सरकार ने यहां स्वतंत्रता दिवस के अगले दिन आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को राजकीय समारोह का दर्जा प्रदान किया था।

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की ज्वाला पूरे देश के साथ डुमरांव में भी धधक उठी थी। उसी साल 15 अगस्त की शाम में डुमरांव के क्रांतिकारियों ने लोकल पुलिस स्टेशन पर तिरंगा फहराने का फैसला लिया। अगले दिन शाम में कपिल मुनी के नेतृत्व में हजारों आंदोलनकारी मुख्य बाजार में इकट्ठा हुए। जुलूस के रूप में ये सभी थाने की ओर कूच कर गए। वहां, भीड़ ने थाने पर कब्जा कर मुख्य गुंबद पर तिरंगा लहरा दिया।
अंग्रेजी हुकूमत की पुलिस ने जैसे ही थाने पर तिरंगा लहराते हुए देखा तो वे सन्न रह गए। थाने के तत्कालीन दारोगा देवनाथ ने ओपन फायरिंग का आदेश दे दिया। इसमें कपिल मुनि कमकर के साथ गोपाल कहार, रामदास सोनार व रामदास लोहार घटनास्थल पर ही शहीद हो गए। जबकि, भीखी लाल, अब्दुल रहीम, प्रदुमन लाल, बिहारी लाल, सुखारी लोहार, साधू शरण अहीर व बालेश्वर दूबे गोली आदि कई लोग गोली से घायल हो गए।
घटना की याद में शहीद स्मारक का निर्माण
इस घटना की याद में यहां एक शहीद स्मारक बनाया गया है। 16 अगस्त को इस कार्यक्रम का आयोजन इन्हीं वीर क्रांतिकारियों के बलिदान को याद करते हुए किया जाता है।
इस पर स्थानीय निवासी शिवजी पाठक बताते हैं कि हमारी आजादी डुमरांव के क्रांतिवीरों जैसे देश के लाखों वीर सपूतों की शहादत का फल है। डुमरांव के लिए यह गौरव की बात है कि स्वतंत्रता दिवस के ठीक अगले दिन अपने वीर सपूतों को नमन करने का मौका मिलता है।
इसी तरह से यहां के रहने वाले संजय कुमार चंद्रवंशी का कहना है कि 16 अगस्त के दिन को खास इसलिए बनाया जाता है कि ताकि नई पीढ़ी को भी अपनी पूर्वजों की वीर गाथा के बारे में बताया जा सके।