बिहार में गंगा व महानंदा की बाढ़ और कटाव से प्रभावित कटिहार जिले के अमदाबाद प्रखंड की छह पंचायतों के एक दर्जन गांवों में लड़कों की शादी के लिए घर में नाव होना जरूरी है। बाढ़-बरसात में चार महीनों के लिए ये गांव टापू बन जाते हैं। नाव से ही आवागमन होता है।
गर्भवती और रोगियों को समय से अस्पताल पहुंचाने में नाव की उपलब्धता महत्वपूर्ण हो जाती है। जिन घरों में शौचालय बने हैं, वे भी बाढ़ का पानी फैल जाने के कारण बेकार हो जाते हैं।
लोगों को शौच के लिए नाव से ऊंचे स्थान पर जाना पड़ता है। रिश्ता तय करते समय वधू पक्ष के लोग लड़के के घर की आर्थिक व पारिवारिक स्थिति का आकलन करने के साथ ही नाव की उपलब्धता की बात भी पूछते हैं। इस इलाके के अधिकतर लोगों की रिश्तेदारी पड़ोसी राज्य बंगाल व झारखंड में है।
60 हजार की आबादी प्रभावित
अमदाबाद प्रखंड की छह पंचायतों के एक दर्जन गांवों की करीब 60 हजार की आबादी को हर साल बाढ़ की समस्या से जूझना पड़ता है। बाढ़ आने के बाद पार दियारा, चौकिया पहाड़पुर, भवानीपुर खट्टी, दक्षिणी करी मुल्लापुर, दुर्गापुर आदि पंचायतें अधिक प्रभावित होती हैं।
दर्जनों गांवों के लोग बिना नाव के लाचार हो जाते हैं। इस कारण अधिसंख्य घरों में नाव रहती है। महानंदा व गंगा नदी की बाढ़ से वर्ष के चार महीने तक यहां आवागमन की विकट समस्या रहती है। सड़कें कट जाती हैं तो बाजार जाने के लिए व मरीजों-गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने के लिए नाव का ही एकमात्र सहारा बचता है।
ग्रामीण सुदामा मंडल व दीपक सिंह का कहना है कि अमदाबाद प्रखंड की सीमा झारखंड एवं बंगाल के करीब है। इन दोनों राज्यों से प्रखंड के कई गांवों का बेटी-रोटी का रिश्ता भी है।
ग्रामीणों ने बताया कि जो लोग लकड़ी की नाव नहीं खरीद सकते, वे टिन की नाव बनाकर रखते हैं। बेटी का रिश्ता लेकर आने वाले लड़के वालों से यह जरूर पूछते हैं कि नाव है न।
अमदाबाद में घर के निकट रखी नाव
करीब 60 हजार की आबादी को बाढ़ की समस्या पड़ता है जूझना वहीं 4 वर्ष के चार महीने तक आवागमन की रहती है विकट समस्या बाढ़ के दौरान सड़कें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।
इस कारण नाव के सहारे ही आवागमन संभव हो पाता है। यदि किसी घर में नाव नहीं होती है तो वहां लड़कों की शादी में काफी समस्याओं का सामना करना होता है।
अंजुरा खातून, प्रखंड प्रमुख, अमदाबाद, बाढ़ के दौरान प्रशासनिक स्तर से भी आवागमन के लिए नाव की व्यवस्था की जाती है। क्षतिग्रस्त सड़कों को मोटरेबल बनाया जाता है। निचले और तटवर्ती इलाकों में बाढ़ से अधिक परेशानी होती है।