बिहार के गयाजी में ही क्यों किया जाता है पिंडदान, क्या है इसके पीछे का कारण, कब और किसने की शुरुआत, यहां पढ़ें

जानकारी

बिहार का गया जिला, जिसको लोग बहुत ही आदरपूर्वक ‘गयाजी’ के नाम से पुकारते हैं. गया जिले को धार्मिक नगरी के नाम से भी जाना जाता है. यहां हर कोने-कोने पर मंदिर हैं, जिनमें स्थापित मूर्तियां प्राचीन काल की बताई जाती हैं. हालांकि, सभी की मान्यताएं अलग-अलग हैं. मान्यता है कि भगवान राम, सीता और लक्ष्मण गया की धरती पर पधारे थे और यहां पिंडदान किया था. तभी से यहां पिंडदान करने की महत्ता शुरू हो गई थी. गयाजी में पिंडदान करने से पूर्वजों की मोक्ष की प्राप्ति होती है. यहां देश-विदेश से भी अब लोग अपने पूर्वजों की मोक्ष की कामना के लिए पिंडदान करने आते हैं.

पिंडदान की कब और किसने की शुरुआत

भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष के 15 दिनों को ही पितृपक्ष कहा जाता है. गरुड़ पुराण के मुताबिक, गयाजी में होने वाले पिंडदान की शुरुआत भगवान राम ने की थी. बताया जाता है कि भगवान राम, सीता और लक्ष्मण ने यहां आकर पिता राजा दशरथ को पिंडदान किया था. बताया यह भी गया कि यदि इस स्थान पर पितृ पक्ष में पिंडदान किया जाए तो पितरों को स्वर्ग की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्री हरि यहां पर पितृ देवता के रूप में विराजमान रहते हैं. इसीलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहा जाता है. बता दें कि, गया के इसी महत्व के चलते यहां लाखों लोग हर साल अपने पूर्वजों का पिंडदान करने आते हैं.

पितृपक्ष में देश-विदेश से तीर्थयात्री पिंडदान व तर्पण करने के लिए गयाजी आते हैं. मान्यता है कि गयाजी में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है और उन्हें सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है. ऐसा करने से उन्हें स्वर्ग में स्थान मिलता है.

28 सितंबर से शुरू होगा पितृपक्ष मेला महासंगम

गयाजी में इस वर्ष 28 सितंबर 2023 से विश्वविख्यात पितृपक्ष मेला शुरू होने जा रहा है, जोकि 14 अक्टूबर 2023 तक चलेगा. मेला ऐतिहासिक हो, इसको लेकर जिला प्रशासन अभी से तैयारियों में जुट गया है. वहीं, डीएम त्यागराजन अपने अधिकारियों के साथ पितृपक्ष मेला की व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए लगातार निरीक्षण कर रहे हैं. वहीं, संबंधित अधिकारियों को पितृपक्ष मेला से पूर्व सारी व्यवस्था को मुकम्मल करने का भी निर्देश दे चुके हैं.

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