बिहार का ऐसा गांव जहां एक भी ग्रेजुएट नहीं, 2024 में टूटेगा रिकॉर्ड; छोटे को पढ़ाकर बड़े भाई ने पेश की मिसाल

खबरें बिहार की जानकारी

 भारत की आजादी को 75 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस दौरान देश की उपलब्धियों को लेकर सरकार अमृत महोत्सव मना रही है। हालांकि, आज भी देश के कई कोने में लोग 75 साल पहले की जिंदगी जी रहे हैं।

बिहार में तो एक ऐसा गांव है, जहां आज तक एक भी ग्रेजुएट नहीं हुआ है। ये अनोखा मामला पूर्णिया जिले का है। यहां के चिकनी डुमरिया पंचायत के सुंदर धरमपुर मंडल टोला को बहुत जल्द पहला ग्रेजुएट युवक मिलने वाला है।

सुंदर धरमपुर (चिकनी) गांव सांस्कृतिक रुप से अपनी अलग पहचान रखता है। चिकनी डुमरिया पंचायत के पूर्व मुखिया अजीत कुमार झा के अनुसार, इस गांव में जातीय वैमानस्यता न के बराबर रही है। इसी गांव के पूर्व मुखिया नंथन मंडल का दूर-दूर के इलाकों में बहुत सम्मान था। उन्हें मेठ का सम्मान मिलता था। इसके पीछे उनका साक्षर होना भी एक कारण था। उन्होंने अपने सभी पुत्र को भी आरंभिक शिक्षा दी थी।

अगले साल खत्म होगा सालों का इंतजार

हालांकि, सालों पुराना यह क्रम अब भी वहीं ठहरा हुआ है। समय के साथ गांव में आर्थिक हालात बदल चुके हैं। खेती-किसानी में लोगों की जिंदगी इस तरह रमी हुई है कि माता-पिता मैट्रिक से आगे अपने बच्चों को पढ़ाने की जरुरत ही नहीं महसूस करते हैं।

इसी गांव का राजू बीए पार्ट टू की परीक्षा देकर बहुत जल्द स्नातक के तीसरे वर्ष में जाने वाला है। अगले साल वह ग्रेजुएट हो जाएगा। करीब 50 परिवार वाले इस गांव में राजू पहला इंसान होगा, जो स्नातक की पढ़ाई पूरी करेगा।

शंकर मंडल ने बेटों को उच्च शिक्षा दिलाने का लिया संकल्प

राजू के पिता शंकर मंडल को उनके पिता ने आरंभिक शिक्षा दिलाने का प्रयास किया था, लेकिन टोले के माहौल से शंकर बाहर नहीं निकल पाये। ऐसे में उन्होंने अपने दो बेटे, पवन मंडल व राजू मंडल को पढ़ाने का संकल्प लिया।

शंकर मंडल के बड़े बेटे पवन को पढ़ाई में बहुत रुचि थी। मेहनत-मजदूरी कर शंकर ने पवन को पढ़ाया। साल 2015 में पवन ने मैट्रिक पास किया, लेकिन अचानक पारिवारिक उलझनों में फंस जाने से उसकी पढ़ाई आगे नहीं हो पाई।

बड़े भाई ने मजदूरी कर छोटे को पढ़ाया

ऐसे में उसने कक्षा सातवीं में पढ़ने वाले अपने भाई राजू को गांव का प्रथम ग्रेजुएट बनाने का संकल्प लिया। पैसे कमाने के लिए पवन खुद महानगर निकल गये। आरंभिक दौर में उन्हें मजदूरी भी करनी पड़ी, लेकिन उन्होंने भाई की पढ़ाई पर आंच नहीं आने दिया। पवन की जिद ने यहां के अन्य परिवारों को भी शिक्षा के प्रति प्रेरित किया है। नतीजतन, गांव के दो और लड़के इंटर में नामांकन कराने की तैयारी में हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *