अतिसाधारण परिवार में पैदा हुए नंदलाल के लिए संसाधन कभी उसके राह का रोड़ा नही बना और अभावों के बीच में भी वह लगातार कुंदन की तरह निखरता चला गया।
इन्हीं अभावों के बीच नंदलाल ने नवोदय की प्रवेश परीक्षा भी उत्तीण कर ली, लेकिन दोनों हाथ गंवा चुके नंदलाल को नवोदय विद्यालय प्रशासन ने यह कह कर नामांकन नहीं दिया कि दोनों हाथ से दिव्यांग होने के कारण उनके देखभाल में परेशानी होगी। इसके बाद भी नंदलाल के उत्साह पर कोई असर नहीं पड़ा।