राज्य में शराबबंदी होने के बाद ताड़ी पीने वालों की संख्या बढ़ गई है। इससे लोगों का लिवर खराब हो रहा है। आईजीआईएमएस में जितने मरीज लिवर में मवाद की बीमारी (अमिबिक लिवर एबसेस) से पीड़ित होकर रहे हैं, उनमे 90 फीसदी मरीजों का लिवर ताड़ी पीने से खराब हुआ है।
यह बीमारी ज्यादा ताड़ी पीने, दूषित खराब ताड़ी पीने से होती है। दूषित ताड़ी का मतलब है-उसमें कुछ मिलावट। खराब ताड़ी का मतलब है- वह सड़ (फरमेंट) गया हो। ऐसे मरीजों का इलाज सर्जरी नहीं है। इसके लिए एक महीने तक दवा लेनी पड़ती है। दवा लेने के बाद भी सुधार नहीं हुआ तो इंडोस्कोपी करके लिवर से मवाद निकाल दिया जाता है। पेट रोग विशेषज्ञ डॉ। मनीष मंडल का कहना है कि ऐसे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
लोगों को यह बताना जरूरी हो गया है कि दूषित, खराब या ज्यादा ताड़ी पीएं। बाहर में ऐसे मरीजों की सर्जरी भी कर दी जा रही है। पर इसका इलाज सर्जरी नहीं है। ऐसे मरीजों को एंटीबायोटिक भी लिखा जा रहा है। पर इसमें एंटीबायोटिक का कोई रोल नहीं है।
विशेषज्ञ चिकित्सक की सलाह पर सिर्फ एक दवा मेट्रोनिडाजोल एक महीने तक दी जाती है। डॉ. मंडल के मुताबिक- लोगों जागरूक नहीं किया गया तो जल्द ही कुछ वर्षों में इस बीमारी से पीड़ित मरीजों की संख्या बहुत अधिक होगी।