पितृपक्ष महासंगम के पांचवें दिन आश्विन कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि को बोधगया के धर्मारण्य, मातंगवापी और सरस्वती पिंडवेदियो पर कर्मकांड का विधान है. स्कंद पुराण के अनुसार महाभारत के युद्ध के दौरान जाने अनजाने में मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान किया था. धर्मारण्य में खासकर त्रिपिंडी श्राद्ध का विधान है. जिस किसी के घर में किसी कारणवस या फिर पितरों की अशांति है. घर के सदस्य से लेकर घर के ग्रह दशा अच्छा नहीं है वे गया के बोध गया स्थित धर्मारण्य में त्रिपिंडी श्राद्ध करते हैं. धर्मारण्य स्थित अष्ट कमल आकार के अरहट कुप में नारियल छोड़कर प्रेत आत्मा से मुक्ति पाते हैं.
पितरों के शांति के लिए यहां त्रिपिंडी श्राद्ध करते हैं
पितृपक्ष के तृतीया तिथि को यहां गया श्राद्ध के साथ पिंडदान का विधान है. सबसे पहले तीर्थ यात्री सरस्वती नदी में जाकर स्नान कर पूर्वजों का तर्पण करते हैं. उसके बाद धर्मारण्य स्थित पिंड वेदी पर पिंडदान करते हैं. पूरे विश्व में पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करने के लिए सर्वश्रेष्ठ जगह माने जाने वाली धर्मारण्य वेदी में श्रद्धालु प्रेत बाधा से मुक्ति के लिए पिंडदान करना नहीं भूलते हैं. पितरों के शांति के लिए यहां त्रिपिंडी श्राद्ध करते हैं. यहां आने मात्र से ही पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है.
पिंडदान तर्पण और मातंगी सरोवर के दर्शन का विशेष महत्व
धर्मारण्य पिंडवेदी के पास दो कूप है, पहला यज्ञकूप और दूसरा अरहट कूप. यज्ञकूप में पिंडदान के बाद पिंड सामग्री को डाला जाता है. जबकि त्रिपिंडी श्राद्ध के बाद अष्टकमल आकार के अरहट कूप में नारियल विसर्जित किया जाता है. इसके बाद मातंगवापी पिंडवेदी में पिंडदान होता है. मातंग ऋषि का तपोस्थली मातंगवापी वेदी पर पिंडदान तर्पण और मातंगी सरोवर के दर्शन का विशेष महत्व मना जाता है. जिसका उल्लेख अग्नि पुराण में भी है.
मातंगवापी परिसर में स्थित मातंगेश्वर शिव पर पिंड सामग्री को छोड़ पिंडदानी अपने कर्मकांड का इति श्री कर आगे बढ़ते हैं.
त्रिपिंडी श्राद्ध का है ये महत्व
धर्मारण्य के तीर्थ पुरोहित उपेंद्र नारायण पांडे बताते हैं कि महाभारत युद्ध के दौरान मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान किया था. धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान और त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है. यहां किए गए पिंडदान और त्रिकपंडी श्राद्ध से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है.