भवानी देवी ने ओलंपिक में उतरने के साथ ही इतिहास बना दिया था. दुनिया के सबसे बड़े खेलों ‘ओलिंपिक’ में किसी भारतीय की तलवार आज पहली बार लहराई है, वो भवानी देवी की तलवार थी. भवानी ओलिंपिक में हिस्सा लेने वाली पहली भारतीय तलवारबाज हैं. इससे पहले 121 साल के इतिहास में कोई भारतीय खिलाड़ी ऐसा नहीं कर सका था. तलवारबाजी यानी ‘फेंसिंग’ 1896 से ओलिंपिक का हिस्सा रही है, मगर कोई भारतीय इसके लिए क्वालिफाई नहीं कर पाया था.
भवानी देवी का ओलिंपिक का सफर भले ही दूसर राउंड में खत्म हो गया हो, मगर भवानी ने अपनी फुर्ती से गहरी छाप छोड़ी है. भवानी ने अपनी तलवार से उस चुनौती को चीरकर रख दिया. भारतीय तलवारबाज भवानी देवी ने अपने ओलंपिक पदार्पण पर आत्मविश्वास भरी शुरुआत करके आसानी से पहला मैच जीता, लेकिन सोमवार को दूसरे मैच में चौथी वरीयता प्राप्त मैनन ब्रूनेट ने हारकर वह टोक्यो ओलंपिक से बाहर हो गईं.
भवानी भले ही ओलंपिक से बाहर हाे गईं, लेकिन उनके ओलंपिक तक पहुंचने की कहानी से कई खिलाड़ियों को प्रेरणा मिलेगी. वे ओलंपिक में तलवारबाजी में उतरने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी थीं. इससे पहले कोई भारतीय खिलाड़ी ऐसा नहीं कर सका था.
कौन है भवानी देवी?
तमिलनाडु के चेन्नै में जन्मी भवानी देवी को 10 साल की उम्र में खेलों में दिलचस्पी हो गई. भवानी देवी ने स्कूल में तलवारबाजी को विकल्पहीनता के कारण चुना था. स्कूल में छह खेल थे, जिनमें से एक को चुनना था. जब तक भवानी अपना विकल्प चुनतीं, तब तक पांच खेलों की सीटें फुल हो गई थीं. इस कारण भवानी के सामने छठा खेल खेलने का ही विकल्प बचा, जो तलवारबाजी था. 2004 से हुई शुरुआत के बाद इस खेल से भवानी का लगाव धीरे-धीरे बढ़ता रहा. साई (SAI) के कोच सागर लागू ने उनकी प्रतिभा को देखकर उन्हें केरल के थालासेरी में सेंटर में ट्रेनिंग के लिए बुलाया और कुछ समय बाद उन्होंने नेशनल में मेडल जीतना शुरू कर दिया. भवानी ने पहला इंटरनेशनल मेडल 2009 कॉमनवेल्थ चैम्पियनशिप में तीसरे स्थान पर रहकर हासिल किया. उन्होंने 2014 एशियाई चैम्पियनशिप में व्यक्तिगत स्पर्धा का सिल्वर पदक जीता.
भवानी देवी ने बताया कि इस खेल से जुड़ने के लिए उन्होंने स्कूल में झूठ भी बोला था. उन्होंने कहा कि मुझसे मेरे पिता की सालाना आय पूछी थी और कहा कि तलवारबाजी बहुत मंहगा खेल है. अगर तुम गरीब परिवार से हो तो तुम इसका खर्चा नहीं उठा पाओगी. लेकिन मैंने झूठ बोला और अपने पिता की आय ज्यादा बता दी. उन्होंने कहा कि शुरू में जब तलवार काफी महंगी होती तो हम बांस की लकड़ियों से खेला करते थे और अपनी तलवार केवल टूर्नामेंट के लिए ही इस्तेमाल करते थे, क्योंकि अगर ये टूट जातीं तो हम फिर से इनका खर्चा नहीं उठा सकते थे और भारत में इन्हें खरीदना आसान नहीं है.
भवानी के तलवारबाजी के करियर को जारी रखने के लिए उनकी मां ने अपने गहने तक गिरवी रखे थे. यहां तक पहुंचने से पहले भवानी को कई ठोकरें लगीं लेकिन तलवार की धार की तरह उनके इरादे भी पैने थे. भवानी के करियर की शुरुआत अच्छी नहीं रही. वह अपने पहले ही इंटरनेशन कंपटिशन में ब्लैक कार्ड पा चुकी थीं. बाउट के लिए तीन मिनट की देरी से पहुंचने के लिए उन्हें यह सजा मिली जिसका मतलब था कि उन्हें आयोजन से बाहर कर दिया गया है.
भवानी देवी के हौसले इन छोटी मोटी रुकावटों से कहां डिगने वाले थे. 2016 के रियो ओलंपिक में ना खेल पाने वाली भवानी ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए चेन्नई स्थित अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर यूरोप में ट्रेनिंग करती रहीं. आठ बार की नेशनल चैम्पियन भवानी देवी कॉमनवेल्थ चैम्पियनशिप टीम इवेंट्स में एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज़ मेडल जीत चुकी हैं. भवानी देवी ने तलवारबाजी में भारत की तरफ से कई कीर्तिमान गढ़े हैं। वह दुनिया में 42वें नंबर की खिलाड़ी हैं. शुरुआत कॉमनवेल्थ खेलों में ब्रॉन्ज मेडल के साथ हुई .ये बात है 2009 की. फिर इंटरनैशनल ओपन, कैडेट एशियन चैम्पियनशिप, अंडर-23 एशियन चैम्पियनशिप समेत कई टूर्नमेंट्स में भवानी ने मेडल्स अपने नाम किए. वह अंडर-23 में एशियन जीतने वाली पहली भारतीय हैं. भवानी देवी देश की उन चुनिंदा 15 एथलीट्स में से रही हैं जिन्हें पूर्व क्रिकेटर राहुल द्रविड़ के फाउंडेशन ने सपोर्ट किया.
भवानी देवी को महिलाओं की व्यक्तिगत साबरे के दूसरे मैच में रियो ओलंपिक के सेमीफाइनल में जगह बनाने वाली ब्रूनेट से 7-15 से हार का सामना करना पड़ा. उन्होंने इससे पहले ट्यूनीशिया की नादिया बेन अजीजी को 15-3 से हराकर दूसरे दौर में प्रवेश किया था. भवानी देवी पहले पीरियड में 2-8 से पीछे हो गई थीं. ब्रूनेट ने दूसरे पीरियड की भी अच्छी शुरुआत की और स्कोर 11-2 कर दिया. भवानी ने इसके बाद लगातार चार अंक बनाए, लेकिन वह नौ मिनट 48 सेकेंड तक चले मुकाबले में ब्रूनेट को पहले 15 अंक तक पहुंचने से नहीं रोक पाईं. इस स्पर्धा में जो भी तलवारबाज पहले 15 अंक हासिल करता है, उसे विजेता घोषित किया जाता है.
भवानी देवी ने कहा, ‘यह मेरा पहला ओलंपिक है और ओलंपिक में भाग लेने वाली मैं देश की पहली तलवारबाज हूं. मैं यहां भारत का प्रतिनिधित्व करके और पहला मैच जीतकर खुश हूं.’ इससे पहले भवानी ने अजीजी के खिलाफ शुरू से ही आक्रामक रवैया अपनाया. उन्होंने अजीजी के खुले ‘स्टांस’ का फायदा उठाया. इससे उन्हें अंक बनाने में मदद मिली. 27 साल भवानी ने तीन मिनट के पहले पीरियड में एक भी अंक नहीं गंवाया और 8-0 की मजबूत बढ़त बना ली थी.
भारतीय महिला बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल ने 2012 लंदन ओलंपिक में ब्रॉन्ज मेडल जीता था. यह हमारा ओलंपिक में बैडमिंटन का पहला मेडल था. इस जीत ने देश में बैडमिंटन को पॉपुलर बना दिया. इसके बाद पीवी सिंधु ने 2016 रियो ओलंपिक में सिल्वर मेडल पर कब्जा किया. वे वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने में भी सफल रहीं. हर खेल को फेमस होने के कारण एक रोल मॉडल की जरूरत होती है और भवानी देवी ने ओलंपिक में उतरकर तलवारबाजी को पॉपुलर तो बना ही दिया है.