बेलाउर सूर्य मंदिर में सबकी मनोकामना होती है पूरी, छठ पर विदेश से भी आते हैं हजारों श्रद्धालु

आस्था जानकारी

मध्य बिहार के प्रसिद्ध सूर्य तीर्थों में शुमार बेलाउर सूर्य मंदिर में हर साल 50 हजार से ज्यादा बिहारी व प्रवासी छठव्रती सूर्य को नमन करने पहुंचते हैं। यहां आने वाले सभी व्रतधारियों की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। बेलाउर सूर्य मंदिर का का निर्माण 1449 ई में बावन सूबा के जमींदार जो उस समय बावन सूबा के राजा के नाम से जाने जाते थे, उनके द्वारा कराया गया था।

आरा जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर प्रसिद्ध बेलाऊर सूर्य मंदिर पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे सुगम है। यह आरा-अरवल मुख्य मार्ग पर स्थित है। सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन आरा व उदवंंतनगर है।

मन्नत पूरी होने पर छठ करने आते हैं श्रद्धालु

मंदिर प्रबंधन समिति सदस्यों ने बताया कि स्थानीय लोगों के साथ ही बिहार के विभिन्न हिस्सों व अन्य प्रदेशों से श्रद्धालु छठ करने आते हैं।

मन्नत पूरी होने पर विदेश में रह रहे लोग भी छठ करने आते हैं। तालाब के बीच मकराना के संगमरमर पत्थर से बनी भगवान भास्कर की प्रतिमा बड़ी ही मनोहारी है।

मंदिर में सात घोड़े वाले रथ पर सवार भगवान भास्कर की प्रतिमा ऐसी लगती है, मानों साक्षात धरती पर उतर रहे हों। प्रतिमा पूर्वाभिमुख न हो कर पश्चिमभिमुख है जो आकर्षण व आस्था का केंद्र है।

‘राजा’ बावन सूबा ने कराया था 208 पोखरों का निर्माण

बेलाउर निवासी विनय बेलाउर,मंटू चौधरी, संटू चौधरी,मधेसर शर्मा आदि ने बताया कि ‘राजा’ बावन सूबा ने सिंचाई व्यवस्था को लेकर 52 गंडा अर्थात 208 छोटे बड़े पोखर का निर्माण कराया था।

अभी भी दर्जन भर से अधिक पोखर अस्तित्व में हैं। उनमें एक भैरवानंद पोखरा भी है, जिसमें राजा ने 1449 ई में भव्य सूर्य मंदिर बनवाया था। हालांकि, हालांकि इसका कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है।

मौनी बाबा ने कराया था पुनर्निर्माण

गांव के लोग बताते हैं कि कालांतर यह मंदिर नष्ट हो गया। ठीक पांच सौ वर्ष बाद 1950 ई में उसी जगह पर करवासिन गांव निवासी संत मौनी बाबा के अथक प्रयास से सूर्य मंदिर का पुनर्निर्माण मकराना के संगमरमर पत्थरों से कराया गया। भगवान सूर्य के अलावा मंदिर में गणेशजी, दुर्गाजी, शंकरजी, विष्णु जी आदि की प्रतिमाएं स्थापित है।

मनोकामना धाम के नाम से है प्रसिद्ध

यहां स्थापित जाटा बाबा का मंदिर सूर्य मंदिर से ऊंचा है, जिसमें उनकी आदमकद प्रतिमा लगी है। इस वजह से यह मनोकामना धाम के नाम से भी प्रसिद्ध है। यहां मनोकामना सिक्का मिलता है, जिसे मनोकामना पूर्ण होने के बाद लौटाना होता है।

अब तक हजारों लोग मनोकामना सिक्का लौटा चुके हैं।प्रचलित कहानियों के अनुसार पोखरा निर्माण के समय गहरी खुदाई के बाद भी पानी नहीं निकलने पर बावन सुबवा के राजा के आदेश पर एक बच्चे को बलि देने के लिए लाया गया। बच्चे ने बलि नहीं देने का आग्रह किया तथा खुद फावड़ा उठाकर ज्योंहि चलाया तालाब से पानी निकलने लगा।

बिहार सरकार ने दिया है पर्यटक स्थल का दर्जा

बिहार सरकार ने इसे स्थल का दर्जा दिया है। मंदिर के विकास के लिए करीब 9 करोड़ रुपये की राशि आवंटन की बात दो वर्ष से कही जा रही है। लेकिन आज तक कोई भी राशि नहीं मिली।

सूर्य मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा 24 कमरे का धर्मशाला बना है, जो छठ की भीड़ के सामने बहुत छोटा पड़ जाता है। मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है।

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