पटना: 160 साल पहले कुंवर सिंह के हाथों अंग्रेजों को करारी मात मिली थी। जो की कुंवर सिंह के जीवन की आखिरी जंग थी। उसी वीर कुंवर सिंह ने आज़ादी से पहले अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था। वीर कुंवर सिंह ने अपने पराक्रम के बदौलत 27 जुलाई से 2 अगस्त 1957 तक अपनी सरकार स्थापित कर ली थी।
दरअसल, लंबे सैन्य अभियान के बाद 22 अप्रैल 1858 को 9 महीने पर वह जगदीशपुर लौटे। जिसके बाद कुंवर सिंह 13 अगस्त 1857 को वहीं जगदीशपुर से ऐलान के साथ अपने गढ़ से निकले थे। जबकि उनके उपर जब उन्होंने जगदीशपुर छोड़ा तब उन पर जिंदा या मुर्दा पकड़वाने के लिए 10 हजार का ईनाम था।
जब वह जगदीशपुर लौटे तब ईनाम की राशि बढ़ाकर 25 हजार कर दी गई थी। कुंवर सिंह की जगदीशपुर वापसी की खबर लगते ही 22 अप्रैल की शाम को ही आरा में तैनात ली ग्रांड 450 से अधिक सैनिकों के साथ जगदीशपुर पर हमले के इरादे से बढ़ा। 23 अप्रैल को जगदीशपुर से दो मील दूर दुलौर से कुंवर सिंह के सैनिक पीछे हटे और उन्होंने जितौरा के जंगल में मोर्चाबंदी की।
इसी जंगल में हुई लड़ाई में ली ग्रांड की सेना बुरी तरह हारी, जिसमें ली ग्रांड खुद मारा गया था। 1857 के विद्रोह के शुरूआती दौर में अंग्रेजों ने कहीं भी उतनी करारी मात नहीं खाई जितनी उन्हें आरा में मिली। इस जंग के बाद कुंवर सिंह ने आरा में 27 जुलाई से 2 अगस्त 1957 तक अपनी सरकार स्थापित कर ली थी। मेरठ, दिल्ली, आरा, कानपुर, झांसी, कालपी, लखनऊ समेत कई शहर विद्रोह के प्रमुख केंद्र थे, लेकिन इनमें आरा ही इकलौता शहर था, जिस पर विद्रोह के आरोप में मुकदमा चला। जिसके कारण शहर का हर आमो-खास अंग्रेजी हुकूमत की निगाह में गुनहगार था। यह मुकदमा 1858 के अधिनियम-X के तहत दायर हुआ था।