बाबा बागेश्वर इन दिनों बिहार में दरबार लगाए हुए हैं। दावा है कि यहां 8-10 लाख लोग पहुंच रहे है। यह संख्या अतिरेक हो सकती है। अगर इसे 2-3 लाख भी मान लिया जाए तो आज के इस दौर में यह इतिहास लिखने जैसा है। बात हिंदूत्व की हो तो भारतीय जनता पोटी (भाजपा) खुद को इससे अलग क्यों रखती, जिसने कुछ ही महीने पहले रामचरितमानस विवाद पर नीतीश कुमार के डिप्टी तेजस्वी यादव की पार्टी को जमकर घेरा था। बीजेपी के काम को आसान लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने कर दिया, जब उन्होंने बाबा के खिलाफ तत्व बयान दिया था।। उम्मीद के मुताबिक बीजेपी के तमाम बड़े नेता इस दरबार में पहुंचे। उनमें केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, राज्यसभा सांसद सुशील मोदी, लोकसभा सांसद रविशंकर प्रसाद, प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी सहित तमाम दिग्गज इस मंच पर आरती की थाल पकड़े हुए दिखे।
दरबार तो धार्मिक है, लेकिन पाटलिपुत्र की इस धरती पर इसके सियासी निहितार्थ भी हैं। बिहार में बीते कुछभाजपा की राजनीति के लिए मुफीद है बाबा बागेश्वर आरजेडी की तुलसी दास वाली राजनीति के जवाब में बीजेपी बाबा बागेश्वर के दरबार में हाज़िरी लगाकर सामाजिक गोलबंदी का परीक्षण कर सकती है। जिस तरह सुशील मोदी सहित बीजेपी के तमामत बड़े नेता उन्हें पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री कहकर संबोधित कर रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि बाबा बागेश्वर के जरिए बीजेपी बिहार की सवर्ण जनता को संबोधित करना चाहती है। पटना के सियासी लियारों में यह भी चर्चा है कि इस पूरे कार्यक्रम के पीछे भूमिहारों का दिमाग है। इसके अलावा बाबा के दरबार में सर्वजातीय भीड़ उमड़ रही है और बाबा खुद को हनुमान का उपासक बताते हैं। यह भी बीजेपी की राजनीति के लिए काफी मुफीद है। बाबा बागेश्वर बीजेपी की घोषित अघोषित लाइन के आसपास ही अपनी बात रखते हैं। हाल ही में उन्होंने बजरंग दल पर बैन का विरोध किया था