हिन्दू धर्म ग्रंथों में सूर्य को ग्रहों का राजा कहा गया है. आषाढ़ माह में सूर्यदेव की विशेष पूजा की जाती है. इस माह में सूर्यदेव की पूजा का अलग ही महत्व है. आषाढ़ माह में उगते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य देने की परंपरा है. मान्यता है कि इस माह में सूर्यदेव की उपासना करने से रोग दूर हो जाते हैं और आयु में वृद्धि होती है. इस माह सूर्यदेव को जल अर्पित करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और आत्मविश्वास बढ़ता है. साथ ही सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.
- माना जाता है इस इस माह में सूर्यदेव की पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. संतान सुख प्राप्त होता हैं. जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं.
- इस माह में भगवान विष्णु की उपासना भी करें.
- आषाढ़ माह में भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
इस माह बच्चे को भगवान वामन का रूप मानकर भोजन कराएं. - इस माह की दोनों एकादशी पर भगवान वामन की पूजा के बाद अन्न और जल का दान करना चाहिए.
- आषाढ़ माह में गुरु की उपासना सबसे फलदायी है.
- घर में समय-समय पर हवन कराएं.
- घर में सुबह और शाम दोनों समय दीपक जलाएं.
- इस माह अचार, दही और खट्टी चीजों का सेवन करने से बचना चाहिए. जल युक्त फल का सेवन करना चाहिए और बेल न खाएं. तेल वाली चीजों से परहेज करें.
कैसे करें सूर्य देव की आराधना ?
आप अपने जीवन में सफलता प्राप्त करते हैं, लेकिन सूर्य देव को जल देते समय कुछ बातों को ध्यान में रखना जरूरी होता है. इन बातों को ध्यान में रखकर यदि सूर्य देव को जल अर्पित करते हैं तो जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और सभी बिगड़े काम भी बनने लगते हैं. हर रविवार को सूर्य पूजन और सूर्य मंत्र का 108 बार जाप करने से लाभ मिलता है. ये सूर्य मंत्र आपकी समस्त मनोकामना पूर्ण करने में आपकी सहायता करते हैं. यह अनुभूत प्रयोग है. भगवान सूर्य नारायण आपकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करेंगे.
सूर्यदेव की न सिर्फ उदय होते हुए बल्कि अस्त होते समय भी पूजा की जाती है. सूर्य देव की डूबते हुए साधना सूर्य षष्ठी के पर्व पर की जाती है, जिसे हम छठ पूजा के रूप में जानते हैं. इस दिन सूर्य देवता को अर्घ्य देने से इस जन्म के साथ-साथ, किसी भी जन्म में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं.
सूर्य की दिन के तीन प्रहर की साधना विशेष रूप से फलदायी होती है.
- सुबह के समय सूर्य की साधना से आरोग्य की प्राप्ति होती है.
- दोपहर के समय की साधना साधक को मान-सम्मान में वृद्धि कराती है.
- संध्या के समय की विशेष रूप से की जाने वाली सूर्य की साधना सौभाग्य को जगाती है और संपन्नता लाती है.