बिहार के कैमूर जिला स्थित कैमूर पहाड़ी के इलाके में 250 गांव के लोग अब भी अंधेरे में रहने को मजबूर है. इस आधुनिक युग में भी यहां के लोग पुरानी परंपरा के तहत बिजली के अभाव में महुआ, कोइनी, अंडी और सरसों तेल के दीए जलाकर घर को रौशन करते हैं.
चूल्हे के आंख पर तो खाना पकता ही है साथ इसी के सहारे लोग भोजन भी करने को विवश हैं. हालांकि अधौरा पहाड़ी पर 130 करोड़ की लागत से लोगों के घरों तक बिजली पहुंचाने के लिए सोलर सिस्टम लगाया गया था. वह अभी अब फेल हो चुका है. जिसके चलते पिछले कई वर्षों से बिजली की सप्लाई बाधित है. ग्रामीणों का कहना है कि पांच साल का अग्रीमेंट फेल होने के बाद से कंपनी सहित कोई भी अधिकारी सुधि नहीं ले रहा है.
सोलर सिस्टम फेल होने से अंधेरे में जीने को हैं विवश
ग्रामीण अक्षय पासवान ने बताया कि आजादी के बाद पहली बार कैमूर पहाड़ी के 250 गांव में बिजली उपलब्ध कराने के लिए 2017 में कैमूर और रोहतास जिला से सटे इलाके में सोलर प्लांट लगाया गया था. इसमें कैमूर जिला के 108 और बाकी रोहतास जिले के पहाड़ी क्षेत्र के गांव में बिजली उपलब्ध कराने के लिए केंद्र और राज्य सरकार के पल पर दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत सोलर सिस्टम लगाया गया था.
इसकी जिम्मेदारी एलएनटी कंपनी को दिया गया था. शुरुआत में तो दो-तीन साल तक ठीक चल उसके बाद कभी भी समय से बिजली की सप्लाई नहीं हुई. अभी आलम यह है कि कैमूर पहाड़ी का अधिकांश गांव में सोलर सिस्टम फेल होने जाने के चलते बिजली से महरूम है. कभी-कभी 2 घंटे के लिए बिजली मिलती है लेकिन वह कुछ ही गांव तक सीमित है.कैमूर पहाड़ी के अधौरा प्रखंड अंतर्गत ताला, झड़ापा, सीकरी में एक से दो घंटे बिजली सप्लाई होती है. वहीं कोल्हुआ गांव में बिजली सप्लाई बंद है. जिससे ग्रमीणों में खासा नाराजगी है.
चूल्हे की रोशनी से घर वाले खाते हैं खाना
ग्रामीण मुखा देवी ने बताया कि गांव में पांच से छह वर्ष पूर्व सोलर सिस्टम लगा था, तो बड़ी खुशी थी कि अब बिजली की रोशनी में रहेंगे और बच्चे भी पढ़ाई करेंगे. लेकिन तीन साल तक यह सोलर सिस्टम चला, उसके बाद से अंधेरे में जी रहे हैं. मजबूरन महुआ के कोइनी तेल और सरसों तेल के सहारे घर को रोशन कर रहे हैं. कुछ लोग धूप से चार्ज होने वाले इलेक्ट्रिक लाइट भी उपयोग करते हैं. किरोसिन तेल भी राशन दुकान देना बंद कर दिया है. खाना जिस चूल्हे से बनता है उसी की रोशनी से खाना खाते हैं. कैमूर और रोहतास के बनवासी इलाके के लोग एक बार फिर अंधेरे में जीने को विवश हैं.