गया के रमना रोड, टेकारी रोड और स्टेशन रोड में बरसात के दिनों में अनरसे की सोंधी खुसबू हरेक व्यक्ति को अपनी ओर खींच लेती है. जो एक बार मीठे अनरसे का स्वाद चख ले वो इसका मुरीद बन जाता है. यही कारण है कि बरसात के दिनों में इसकी खपत ज्यादा होती है. अनरसा एक प्रकार का मीठा बिहारी व्यंजन है जो अरवा चावल के आटे, तिल और चीनी से बनाया जाता है. अनरसा की मिठास की लोकप्रियता का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि बिहार की पारंपरिक व अतिप्राचीन मिठाई अनरसा विदेशियों को भी खूब भाती है. अनरसा को अन्य मिठाइयों की अपेक्षा काफी शुद्ध माना जाता है और शास्त्रो में इसका धार्मिक महत्व बताया गया है.
दान करने से सौभाग्य की होती है प्राप्ति
गया वैदिक मंत्रालय पाठशाला के पंडित राजा आचार्य बताते हैं कि शास्त्र के अनुसार अनरसा का धार्मिक महत्व है और इसे संस्कृत में अपूप बोला जाता है. चावल के आटे में शक्कर और सफेद तिल मिलाकर इसे तैयार किया जाता है. यह मिठाई देवताओं का अति प्रिय है. पूजा पाठ के विधि में इसका उपयोग दान के स्वरूप दिया जाता है. शास्त्र के अनुसार अपूप या अनरसा दान करने से अत्यंत सौभाग्य की प्राप्ति होती है. अभी अधिक मास चल रहा है और इस महीने में अपूप दान करने से असंख्य फल की प्राप्ति होती है.
जीवन में नहीं होगा कोई कष्ट
पंडित राजा आचार्य बताते हैं कि 33 पीस अनरसा लेकर 33 कोटि देवताओं का स्मरण करते हुए किसी को दक्षिणा के साथ दान देने से आपके जीवन में कोई कष्ट नहीं होगा. किसी भी पूजा पाठ में आप अपूप बनाकर गरीबों में जरूर दान करें. इससे श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है. घर में सभी खुशहाल रहते हैं. तो आपको भी अगर अपना भाग्य चमकाना है, तो इस विधि को अपना सकते हैं
दो तरह का होता है अनरसा
अनरसे दो तरह के बनाये जाते हैं. एक गोल अनरसा दूसरी चपटी टिकियों के आकार में. गोल अनरसे खाते समय कुरकुरे के साथ-साथ अन्दर से मुलायम होते हैं. जिनका स्वाद एकदम अलग होता है. जब इन अनरसों में खोवा मिला दिया जाता है. तब इन्हें खोवा अनरसा कहते हैं. ये सामान्य अनरसों की अपेक्षा अधिक नर्म और स्वादिष्ट होते हैं.
गया शहर में आज 200 से अधिक लोग अनरसा के व्यवसाय से जुड़े हुए हैं. यहां का अनरसा देश के कोने-कोने के अलावा विदेशों में भी भेजा जाता है. चपटा अनरसा का इस्तेमाल पूजा पाठ में किया जाता है. खासकर तीज और कर्मा पूजा में महिलाएं इसे प्रसाद के रुप मे जरूर रखते हैं.