किसी धार्मिक पूजा में पंडित पुरुष ही होते हैं। लेकिन बिहार के इस मंदिर में कुछ और ही प्रथा चलती है। दरभंगा के कमतौल स्थित इस मंदिर में रामनवमी के दिन एक अनोखी परम्परा देखी जाती है। माता अहिल्या के इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालू पहुंचते हैं।
ये मंदिर वहीं स्थित है, जहां राम भगवान ने अहिल्या का उद्धार किया था। रामनवमी पर यहां श्रद्धालु अहले सुबह से बैंगन का भार लेकर मंदिर में पहुंचते है एवं राम और अहिल्या के चरणों में बैंगन के भार को चढ़ाते हैं।
कहा जाता है की त्रेता युग में जनकपुर जाने के क्रम में राम जी ने अपने चरण से गौतम ऋषि के श्राप से पत्थर बनी अहिल्या का उद्धार किया था। भगवान् राम के चरणों के स्पर्श से पत्थर बनी अहिल्या में जान आ गई थी।
मान्यताओं के मुताबिक इसी तरह जिस व्यक्ति के शरीर में अहिला होता है, वे रामनवमी के दिन गौतम और अहिल्या स्थान के कुण्ड में स्नान कर अपने कंधे पर बैंगन का भार लेकर मंदिर आते हैं और बैंगन का भार चढ़ाते हैं तो उन्हें अहिला रोग से मुक्ति मिलती है।