बिहार का एक मंदिर जहाँ शराबबंदी से टूट गई 300 सालों की परंपरा

आस्था

बिहार के सहरसा जिले के महिषी में है एक अनूठा मंदिर जहाँ पूजन की सामग्री नारियल,फल,फूल आदि के अलावा मदिरा को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।

आपने बिलकुल सही पढ़ा। मान्यताओं के अनुसार ऐसे तो अक्सर काल भैरव को मदिरा चढ़ाने की मान्यता है, लेकिन उग्रतारा मंदिर में इसके विपरीत नवरात्र में देवी मां के मंदिर में माता को मदिरा चढ़ाई जाती है। हालाँकि पिछले वर्ष से बिहार में पूर्ण शराबबंदी के बाद से यहाँ कई सौ सालों से चली आ रही परंपरा टूट गई।

सहरसा के जिला मुख्यालय से 16 किमी दूर महिषी स्थित प्रसिद्ध सिद्धपीठ उग्रतारा मंदिर में हर साल नवरात्र के अष्टमी को कालरात्रि में होने वाली पंचमकार पूजन में उपयोग में लाई जाने वाली पांच सामग्रियों में एक शराब भी महत्वपूर्ण रही है। निशा पूजा की रात मां भगवती को भारी मात्रा में शराब चढ़ाया जाता था जिसकी वजह से प्रसाद स्वरूप शराब लेने के लिए पूरी रात मंदिर के इर्द-गिर्द शराब के शौकीनों की भीड़ रहती थी।

नवरात्र में शक्ति पूजन के लिए देश भर में कहीं बलि देने की तो कहीं शराब चढाने की परंपरा है। आस्था और परंपरा का नाम लेकर लोग अक्सर विरोध करके अपनी परम्परा का निर्वाह करते हैं। लेकिन उग्रतारा मंदिर के पुजारियों ने विरोध या टकराव का रास्ता अपनाने की जगह मंदिर की तीन सौ साल पुरानी परंपरा को तोड़ने का निर्णय लिया।

राज्य में शराबबंदी लागू होने के बाद तीन सौ साल के इतिहास में पहली बार पिछले नवरात्र पर उग्रतारा मंदिर में निशा पूजा पर शराब नहीं चढ़ाई गई। शराब की जगह पुजारियों ने सोमरस से निशा पूजा संपन्न कराई। और अब, प्रत्येक वर्र्ष की तरह मंदिर के आसपास शराब का प्रसाद लेने वालों की भीड़ भी नज़र नही आती।

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