प्रिय रवीश,
मुझे नहीं पता आपको फ़्रूट केक पसंद है या नहीं। मुझे तो ये भी नहीं पता कि आपको केक पसंद है या नहीं। या बर्थडे मनाना पसंद है या नहीं। लेकिन मैं आपको बता दूं कि ये पहली बार है जब मुझे आपका जन्मदिन हफ़्ते भर से याद है। एक-एक दिन बीत रहा था, मुझे एक्साइटमेंट हो रही थी। मुझे केक बहुत पसंद है। चॉकलेट फ़्लेवर।
इसीलिए वो चॉकलेट वाले कुकीज़ ले आई। पर आपके लिए फ़्रूट केक लिया। देखने में रंग बिरंगा लगता है न इसलिए। आप पूछेंगे कि मैं आपका जन्मदिन मना ही क्यों रही हूँ। तो इसका जवाब है कि मुझे नहीं पता। बहुत कुछ कर लिया करती हूँ, बहुत ख़ुश रहने पर। आज आपका जन्मदिन है इसलिए बहुत ख़ुश हूँ। शाम में सो गई थी, उठी तो पता चला कि सुमित्रा देवी का होनहार बेटा रवि नहीं रहा। मुझे बुरा लगा। पर बहुत भावुक नहीं हुई। शायद इसलिए कि जब मैं बड़ी हो रही थी, तो शाहरुख ख़ान की फिल्में देखा करती थी। राज जिस तरह राज करता है दिल पर, शायद रवि नहीं करते। पर शशि शशि थे। और हमेशा रहेंगे।
अब बारह बजने को है। मुझे लग रहा है कि आप आ रहे हैं इस दुनिया में। कितना फ़न्नी है ये। आप तो आ चुके हैं कब के। कितना सुंदर होता है सुंदर लोगों का आ जाना!
आप मुझे अपना फ़ैन, एक पागल लड़की या आज-कल का भ्रमित युवा, जो समझना हो समझ सकते हैं। पर मुझे ये अच्छा नहीं लगेगा। इनमें से कुछ भी नहीं हूँ। आप अच्छा काम करते हैं। और आप भरोसा बनाए रखते हैं। बस आप पर भरोसा रखने वाली एक नागरिक हूँ। आप पल्ला नहीं झाड़ सकते इस भरोसे से। आपको इस भरोसे को जगह देनी होगी। और मुझे यकीन है, आप ये बखूबी करते हैं।टीवी आपको हम सबके क़रीब ले आया। वर्ना मुझे क्या पता था कौन हैं रवीश। आपके काम को पसंद करने वालों की कमी नहीं है। तमाम नफ़रत करने वालों के बीच खड़ा होकर भी आप इतना यकीन रख सकते हैं कि आप सही हैं, और लोग ये बात जानते हैं।
मैं क्या सीखती हूँ आपसे ये बाकी लोगों से भिन्न है। मैं खाना बनाते हुए कचुआए रहती हूँ, कुछ कंफ़्यूज़्ड, कुछ बेचैन और आप टीवी पर लमही गाँव में घूमते रहते हैं। मैं आपको देखती हूँ और मुस्कुरा देती हूँ। अब मैं अपना कुछ नहीं सोच रही। बातों-बातों में आप कुछ बोलते हैं और मुझे मेरी उलझन का जवाब मिल जाता है। आप कुछ और कह रहे हैं, मैं कहीं और उसे इस्तेमाल कर रही हूँ। माँ बोलती नहीं न मेरी। मुझे लगने लगता है, आपके मुंह से माँ बोल गई कुछ! मेरी माँ बोल-सुन नहीं पाती। तो मैं उससे कुछ कह नहीं पाती। कुछ पूछ नहीं पाती। बस काम भर इशारे आते हैं। उसे भी, मुझे भी। ऐसे में आप जादू की तरह टीवी पर आते हैं, और मुझे कुछ-कुछ बताकर, टाटा बोल, चले जाते हैं। मुझे टीवी पर रवीश कुमार में ही वो व्यक्ति क्यों मिला, मुझे नहीं पता। और ठीक-ठीक कब मिला, मुझे याद नहीं। मैं जब इस बात पर सोचने लगती हूँ, तो मन अंदर से कहने लगता है- खोने लगी न तुम जादुई भरोसे में? कच्ची नास्तिक हो तुम! नई-नई हुई हो, इसलिए जाओ तुम्हारा दूध-भात।
रवीश, आप भी मेरा दूध-भात रख लीजिए। नादान समझ लीजिए। फिर शायद आपको ये केक पसंद आएगा। ये नादान आपसे मिलना नहीं चाहती। सोचती है, आप अगर सही में कभी दिख गए तो पलट जाएगी दूसरी तरफ और तब-तक नहीं मुड़ेगी जब-तक आप वहाँ से चले न जाएँ। मैं ऐसी किसी जगह नहीं जाती, जहाँ आप अतिथि हों। मुझे डर लगता है आपसे। मेरा मन कहता है कि यूं ही कैसे, बिना कुछ काम का काम किए, रवीश से मिल लोगी? क्या मुंह दिखाओगी? आप सच में माँ वाला प्रेशर बनाए रखते हैं मुझ पर। और हैंडसम इतने लगते हैं कि मैं आपको देख-देख ब्लश करने लगती हूँ। ग़ज़ब का कॉम्बो है ये!
रवीश, मैं और भी बहुत कुछ कहना चाहती थी। पर अभी समझ नहीं आ रहा। रहने देती हूँ। अगर कभी मिली और मिलने पर शब्द निकले मुंह से, तो कह दूंगी। या रहने दूंगी। आप माँ से हैं न, तो समझ ही लेंगे! रवीश, जन्मदिन बहुत-बहुत मुबारक! कुछ लोगों को आ जाना चाहिए इस दुनिया में कि उनका आना ज़रूरी होता है। किसी देश का पत्रकार बनने के लिए नहीं, किसी लड़की की माँ के शब्द बनने के लिए। आज का प्राइम-टाइम नहीं देखा है। रोज़ नहीं देख पाती। बल्कि बुरा लगता है इस बात का। गुस्सा आता है खुद पर। कोशिश करती हूँ जितना देख सकूं, देख लूं। केक खाकर देख लूंगी।
और हाँ, ये केक न रवीश, बस अपनी रूम मेट के साथ शेयर करूंगी। और नहीं दे रही मैं आपका वाला केक किसी को! जिसको देती वो लड़की रानी गाइदिनल्यू हॉस्टल में पड़ी हुई है, मैं यहाँ लक्ष्मी नगर में। और किसी को नहीं देना। आप प्लीज केक खा लीजिएगा आज। कंपल्शन नहीं है वैसे। मन न हो, तो रहने दीजिएगा।
टाटा, रवीश! हैप्पी बर्थडे!
©निशी शर्मा