बिहार सरकार के वरिष्ठ मंत्री श्रवण कुमार ने यह कहकर कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राष्ट्रपति पद के बेहतर उम्मीदवार होंगे और उनमें इस पद की सारी काबिलियत है, एक नई सियासी चर्चा को जन्म दे दिया है। चार महीने पहले फरवरी में भी यह चर्चा जोर से उठी थी कि नीतीश कुमार राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के उम्मीदवार हो सकते हैं। इसके लिए चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और बड़े नेताओं से संपर्क कर रहे हैं। हालांकि, तब नीतीश कुमार ने इन अटकलों को खारिज कर दिया था। बाद में प्रशांत किशोर ने भी अलग रास्ता अपना लिया। इसके बाद यह चर्चा थम गई।
इधर, गुरुवार को चुनाव आयोग द्वारा राष्ट्रपति चुनाव की तारीख का एलान करने के कुछ ही घंटे बाद श्रवण कुमार के उक्त बयान को अनायास या निराधार कहकर खारिज नहीं किया जा सकता है। श्रवण कुमार ने कोई ठोस बातें तो नहीं कहीं और न ही यह जदयू का कोई आधिकारिक बयान है। लेकिन, अपनी इच्छा के बतौर दिये गये उनके बयान के सियासी निहितार्थ निकाले जाएंगे।
मालूम हो कि नीतीश कुमार वर्ष 1989 में बाढ़ से सांसद बने और लगातार पांच बार लोकसभा का चुनाव यहां से जीते। वर्ष 1990 में पहली बार केंद्र में मंत्री बने। वर्ष 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्र में मंत्री बने। वाजपेयी सरकार में वर्ष 2004 तक उन्होंने कई मंत्रालयों को संभाला। नवंबर, 2005 से नौ महीने छोड़कर वह बिहार के मुख्यमंत्री हैं।
नीतीश कुमार को अगर विपक्ष साझा उम्मीदवार बनाने का फैसला लेता है तो उसके कई आधार हैं। नीतीश कुमार जैसा अनुभवी और बड़े कद का दूसरा चेहरा उसके पास नहीं है। इसके अलावा सबसे ताजा फैसला बिहार में जाति आधारित गणना कराने का है। जाति आधारित गणना कराने के पक्ष में कर्नाटक, तेलंगाना और ओडिशा आदि राज्य मुखर रहे हैं। वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कहा कि जाति आधारित गणना पर सभी राज्य सहमत होते हैं तो वह भी इसका समर्थन करेंगी।
इधर सर्वदलीय बैठक में भले ही भाजपा ने सहमति दी है, लेकिन सैद्धांतिक तौर पर वह इसके खिलाफ है। जनसंख्या नियंत्रण कानून हो, एनआरसी का मामला या धर्मांतरण का, नीतीश कुमार का स्टैंड बहुत साफ रहा है। इन मुद्दों पर उनके विचार भाजपा से इतर रहे हैं। इस तरह अगर विपक्ष नीतीश कुमार को उम्मीदवार बनाने पर सहमत होता है तो इससे देश में एक नया सियासी समीकरण आकार लेगा। ठीक इससे उलट अगर एनडीए में उन्हें उम्मीदवार बनाने पर सहमति बनती है तो इसके पक्ष में भी तमाम तर्क हो सकते हैं। सबसे बड़ा तर्क एनडीए से उनकी लंबी राजनीतिक साझेदारी का है। इसके अलावा अनेक मामलों पर अलग वैचारिक धरातल के बावजूद गठबंधन में संतुलन बनाए रखना है। वैसे नीतीश कुमार की उम्मीदवारी पर विपक्ष को एकजुट करना या भाजपा में सहमति बनाना उतना आसान नहीं होगा।
हालांकि, राजद, भाजपा और कांग्रेस नेताओं के बयान से यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि नीतीश कुमार की उम्मीदवारी पर पक्ष-विपक्ष में कोई मंथन चल रहा है या नहीं। पर, राजद के प्रवक्ता चितरंजन गगन ने बयान जारी कर कहा है कि बिहार का कोई व्यक्ति राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री बनता है तो राजद के लिए काफी खुशी और बिहार के लिए गौरव की बात होगी। पिछले राष्ट्रपति चुनाव में भी राजद ने बिहार के ही मीरा कुमार को समर्थन दिया था।
वहीं, भाजपा प्रवक्ता रामसागर सिंह ने कहा है कि राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी कौन होगा, इसका निर्णय एनडीए सामूहिक रूप से करेगा। उसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार निश्चित रूप से शामिल होंगे और साथ होकर ही निर्णय लेंगे। वहीं, कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता अजित शर्मा ने कहा है यह एनडीए का अंदरुनी मामला है कि वह नीतीश कुमार को उम्मीदवार बनाता है या नहीं। राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की बात तो नीतीश कुमार स्वयं खारिज कर चुके हैं। वैसे नीतीश कुमार बिहार में अच्छा काम कर रहे हैं।