14 अगस्त की आधी रात को ही नेहरूजी ने आजादी की घोषणा की थी। उस समय तक गांव में सब लोग सोए हुए थे। 15 अगस्त की सुबह पूर्व की भांति ही लोग अपनी गतिविधियों में लगे थे। शाम तक लोगों को आजादी की खबर नहीं थी।
शाम को सात बजे हल्का अंधेरा हो गया था। गांव के मुखियाजी कमला सिंह पटना से किसी सरकारी गाड़ी से शाम छह बजे गांव पहुंचे थे। उन्होंने ही आजादी मिलने की सूचना सब गांववासियों को दी। बताया कि उन्होंने पटना में एक सरकारी दफ्तर में रखे अखबार में इस संबंध में समाचार देखा था। उस अखबर को एक साथ 10-20 लोग घेर हुए थे। पहली पेज से आखिरी पेज तक आजादी की ही खबर थी। किसी तरह उसका एक पेज लेकर पहुंचे थे। बताया था कि पूरे शहर में उन्होंने उस दिन अखबार की खोज की थी। लेकिन अखबार नहीं मिला।
जैसे ही आजादी की सूचना मिली, गांवों में लोग घरों से बाहर निकलकर जुटने लगे। आसपास के 10-20 गांवों में यह सूचना तेजी से फैल गई। लोग देर रात में ही बिक्रम थाना के पास स्थित एयरोड्रम की ओर दौड़ने लगे। उस समय बिक्रम में ही एयरोड्रम था। फुलवारी में तो बाद में एयरपोर्ट बना। एयरोड्रम की ओर पहुंचे तो उस समय एक हजार लोग एयरोड्रम को चारों ओर घेरे हुए थे। आमतौर पर पहले शाम होने बाद एकाध-बार ही यहां से हवाई जहाज उड़ा करता था। उस दिन एक के बाद एक तीन-चार हवाई जहाजों ने उड़ान भरी। रातों रात अंग्रेजों के कई बड़े अफसर वहां से निकल गए। स्वतंत्रता सेनानी कामेश्वर सिंह ने आजादी मिलने के दिन और उससे पहले की कुछ यादगार बाते साझा की।
कलेक्ट्रेट पर झंडा फहराने में गए थे जेल
सदिसोपुर मिडिल स्कूल में पढ़ाई के दौरान ही भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई थी। कॉलेज में पढ़नेवाले छात्रों ने कलेक्ट्रेट में झंडा फहराने की योजना बनायी। नौ अगस्त से ही पटना कलेक्ट्रेट में झंडा फहराने की तैयारी होने लगी। 11 अगस्त को 100 से ज्यादा की संख्या में हाथों में तिरंगा लेकर छात्रों का दल पटना कलेक्ट्रेट की ओर कूच करने लगा था।
उस समय लाठीचार्ज हो गया। उसी भगदड़ में मैं गिर पड़ा। घुटना पूरी तरह से छिल गया था, पैरों में मोच आने से चलना मुश्किल हो गया। मैं और पटना सिटी का एक युवक पकड़े गए। 11 अगस्त की शाम को फुलवारी जेल में डाल दिया गया। उस दिन से रोज 10- 20 आंदोलनकारी युवक जेल आने लगे थे।
सूचना जेल में मिली। उस दिन पूरे जेल में मातम रहा। शायद ही कोई क्रांतिकारी रहा हो जिसने पानी भी ग्रहण किया हो। जेल में क्रांतिकारियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही थी। कैद में कई-कई रात बिना सोए ही हमलोग गुजार रहे थे।
26 अगस्त को अचानक कम उम्र के कैदियों को पटना के बांकीपुर जेल में शिफ्ट किया जाने लगा। मुझे भी वहां भेजा गया। जेल में बड़ी संख्या में स्कूली छात्रों को बंद करने के खिलाफ गांधी जी ने आमरण अनशन की घोषणा कर दी। उनके अनशन के 33वें दिन अंग्रेज प्रशासन ने छात्रों को छोड़ने का ऐलान किया। लगभग 35 दिन कैद में रहने के बाद बाएं हाथ में मुहर लगाकर 16 सितंबर की शाम को हमें छोड़ा गया। वहां से गांव पैदल ही जाना पड़ा था। छूटने के बाद भी अंग्रेजों के विरोध में कोई कमी नहीं आई।
हवाई जहाज से रातोंरात निकल गए अंग्रेज अफसर
एयरोड्रम से एक के बाद एक कई हवाई जहाज उड़ान भर रहे थे। उत्साह में लोग जोर-जोर से भारत माता की जय, गांधी जी और नेहरू की जय-जयकार करने लगे थे। पहले एयरोड्रम के लगभग आधे किलोमीटर की दूरी तक एक घेरा बना रहता था, जहां आम हिन्दुस्तानियों के प्रवेश पर रोक लगी थी। आजादी के दिन वहां कोई रोक नहीं थी। एयरोड्रम के कंटीले तारों के घेरे तक सब लोग जुट चुके थे। लगभग आधी रात को वहां से जब अपने गांव पहुचे तो बुजर्ग और महिलाएं भी जगी हुई थीं। ढोल-नगाड़ा भी बज रहा था। पूरी रात शायद ही कोई पुरुष-महिला गांव में सोए होंगे। अगले दिन गांव के मंदिर में सामूहिक पूजा-पाठ हुई।