64 साल से इस दुकान पर मिल रहा शुद्ध पेड़ा, 20 दिन तक नहीं होता खराब, सिर्फ 10 रुपए है कीमत

जानकारी

1959 से चल रही है यह दुकान
दुकान के मुख्य कारीगर दिलीप कुमार बताते हैं कि यह दुकान पुश्तैनी है. इसे सर्वप्रथम उनके दादा स्व. बसंत हलवाई ने 1959 में शुरू किया था. यह दुकान चार पुश्तों से लोगों को शुद्ध पेड़ा खिलाती आ रही है. उन्होंने बताया कि दादा के बाद उनके पिता ने इस दुकान को चलाया. इसके बाद अब स्वयं दुकान को संभाल रहे हैं. इस कार्य में बच्चे भी साथ दे रहे हैं. पेड़े को बनाने में दूध, इलाइची और चीनी की जरूरत होती है.

ऐसे तैयार होता है पेड़ा
दिलीप कुमार ने बताया कि शुरू से एक खास दुकान से दूध की खरीदारी करते आ रहे हैं, जिससे शुद्ध दूध से पेड़ा तैयार करते हैं. उन्होंने बताया कि 35 रुपए प्रति लीटर गाय का दूध और 45 रुपए प्रति लीटर भैंस का दूध खरीदकर पेड़ा बनाते हैं. प्रतिदिन 11 बजे धीमी आंच पर दूध को पकाना शुरू करते हैं तो 1 बजे तक पेड़ा तैयार होता है. एक बार कड़ाही में 30 लीटर दूध चूल्हे पर चढ़ाते हैं तो पेड़ा के लिए 11 से 12 किलो खोवानिकलता है. जिसमें चीनी मिला कर पेड़ा तैयार करते है.

प्रत्येक कड़ाही पर मिलता है 500 रुपए मुनाफा
दिलीप कुमार ने बताया कि इस काम में परिवार के तीन अन्य सदस्य भी साथ देते हैं.  दुकान पर खुदरा और थोक के रूप में पेड़ा की बिक्री होती है. उन्होंने बताया कि प्रतिकिलो 400 रुपए रेट है तो वहीं सिंगल पीस पेड़ा का 10 रुपए में लगता है. एक किलो में तकरीबन 40 पेडा़ा चढ़ता है. कुल मिलाकर एक कड़ाही खोवा से निर्मित पेड़ा पर 500 रुपये की बचत हो जाती है. हालांकि, कभी भी मुनाफे के लिए गुणवत्ता से समझौता नहीं किया गया. जिसके चलते ग्राहकों का भरोसा 64 सालों से कायम है.

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