5 लाख रुपये से शुरू की थी कंपनी, अब सालाना टर्नओवर 2 करोड़, बिहारी युवा ने ऐसे जमाई धाक!

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आर्मर ब्रांड का नाम तो आपने सुना होगा. अगर नहीं, तो हम आपको इसकी सक्सेस स्टोरी बताने जा रहे हैं. दरअसल बिहार का एक युवक एमबीए कर देश की बड़ी कंपनी जस्ट डायल में नौकरी हासिल कर लेता है. इसके बाद उसको यह काम रास नहीं आता है. दिमाग में अपना बिजनेस करने की बात घूम रही होती है. फिर 2016 नौकरी छोड़ अपने घर आरा की ओर निकल पड़ता है. इसके बाद पांच लाख की पूंजी के साथ दो कमरे में टेक्सटाइल का काम शुरू किया. आज सालाना टर्नओवर 2 करोड़ रुपये है.

आरा से सटे उदवंतनगर प्रखंड के कसाप गांव में आर्मर का कारखाना कई एकड़ में फैला है. इसको ब्रांड बनाने में आरा के माधवपुरम सर्वोदय नगर धोबीघाट मोहल्ला के रहने वाले मिथलेश सिंह ने कड़ी मेहनत की है. उन्‍होंने बताया कि दिल्ली की इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई कर जस्ट डायल में नौकरी हासिल की थी. नौकरी करने के दौरान ही दिमाग में आइडिया आया कि दूसरे की नौकरी से बेहतर खुद का छोटा बिजनेस रहेगा. इसके बाद आरा आकर एक कमरे में दो मशीन और पांच लाख रुपये की लागत से कपड़े का बिजनेस शुरू किया. मिथलेश सिंह के मुताबिक, आज आर्मर सालाना 2 करोड़ का टर्नओवर वाला ब्रांड बन चुका है.

85 लोगों को दे रहे रोजगार


लोकल 18 से बात करते हुए मिथलेश सिंह ने बताया कि दूसरे की नौकरी से बेहतर खुद का व्यापार है. बिजनेस शुरू करने के पहले ही दिमाग में सेट था कि जितना ज्यादा हो सके लोगों को रोजगार देना है. आज लगभग 15 महिलाओं समेत 70 लोगों को रोजगार दे रहे हैं. इसमें न्यूनतम वेतन 8 हजार और अधिकतम 25 हजार है. कसाप गांव और आसपास के कई गांवों के लोग यहां सिलाई, स्टिचिंग, कटनिंग, स्टोर मैनजमेंट, एकाउंटेंट समेत कई काम संभालते हैं. अभी फैक्ट्री में 80 मशीन से कारीगर रात दिन प्रोडक्शन कर रहे हैं.

कोरोना को बनाया अवसर, बना डाला ब्रांड
मिथलेश ने बताया कि अगर आपदा आए तो इसमें हम लोगों को अवसर खोजना चाहिए. यह अवसर सभी के लिए होगा. 2020 में कोरोना आया, तो लुधियाना और अहमदबाद जैसे रेडिमेड वस्त्र उद्योग में काम करने वाले कारीगर अपने-अपने गांव लौट कर आ गए. साथ ही बताया कि उन्‍होंने इस आपदा को अवसर के रूप में अपनाया. बाहर से आये कारीगरों को नौकरी पर रखा. इसके बाद प्रोडक्शन क्‍वालिटी में बहुत निखार आया है.

फैक्ट्री में तैयार होते हैं ये प्रोडक्ट
मिथलेश के मुताबिक, व्यवसाय बढ़ाने के लिए मुख्यमंत्री उद्यमी योजना के तहत 10 लाख का लोन लिया. इसके बाद काम चल निकला. साथ ही बताया कि फैक्ट्री में लोअर इनर, टीशर्ट, ट्रैक सूट आदि बनाए जाते हैं. बिहार के विभिन्न शहरों के अलावा यूपी के मऊ, पश्चिम बंगाल के दक्षिण मिदनापुर और असम के डिब्रूगढ़ तक माल जाता है. मिथिलेश ने बताया कि दिल्ली, लुधियाना, भिवंडी आदि से कपड़ों की सिलाई से संबंधित जरूरत के सामान मंगवाए जाते हैं. जबकि 400 लोगों को रोजगार देने का प्राथमिक लक्ष्य है.

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