350 साल का ये पेड़ है बेहद चमत्कारी! भक्तों का दावा- इसके पत्ते या फल खाने से निसंतान की भर जाती है गोद

जानकारी

पुरानी पटना जो पटना साहिब के नाम से प्रसिद्ध है वहां तकरीबन 350 सालों से भी अधिक पुराना एक करौंदे का पेड़ लगा है. जो अविश्वसनीय रूप से आज भी हरा- भरा है. करौंदा जिसे करोंदा या करोंदी भी कहा जाता है, ये असल में एक झाड़ीनुमा पेड़ होता है, जिसकी ऊंचाई अमूमन 6 से 7 फीट तक की होती है. वैज्ञानिक भाषा में इसे कैरिसा कैरेंडस कहा जाता है. इसकी उम्र भी 30 वर्ष से ज्यादा नहीं होती. आश्चर्य की बात है कि बाललीला परिसर में स्थित ये अद्भुत करौंदे का पेड़ ना सिर्फ 350 सालों से भी अधिक पुराना है बल्कि इसकी ऊंचाई भी 20 फीट से अधिक है.


मूल रूप से पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ के रहने वाले कथावाचक अर्जुन सिंह बताते हैं कि ये पेड़ 3 सदियों से भी अधिक समय से हरा- भरा है. इसलिए हम सभी लोगों के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं है. इस पौधे को गुरु महाराज ने अपने हाथों से लगाया था. अर्जुन सिंह ने दावा करते हुए कहा कि इस पौधे के पत्ते को या फल को कोई भी अरदास करके खाता है तो उसकी गोद गुरु कृपा से अवश्य संतान से भर जाती है. बताते चलें कि करौंदे के फलों का उपयोग सब्जी और अचार बनाने में किया जाता है. इसमें विटामिन सी भी प्रचुर मात्रा में पाई जाती है. अमूमन यह पौधा भारत के गुजरात, उत्तर प्रदेश छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्य प्रदेश, और हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है.

सच्चे पातशाह के दतमन की है पौध


ज्ञानी अर्जुन सिंह बताते हैं कि गुरु महाराज को दतमन (दांत मांजने) के लिए माता विशंभरा ने करौंद का एक डंठल पकड़ा दिया था. जिसे गुरु महाराज ने खेल खेल में ही जमीन में गाड़ दिया. इसके कुछ ही दिनों बाद वह डंठल पौधा बन गया और देखते ही देखते पेड़ में बदल गया. अर्जुन सिंह ने ये भी बताया कि सच्चे पातशाहगुरु गोविंद सिंह जी ने ये भी कहा था कि जबतक ब्रह्मांड का अस्तित्व है तबतक ये पेड़ यूंही हरा- भरा और जीवंत ही रहेगा. साथ ही सच्चे मन से इसका सेवन करने वालों की सुनी गोद भी भर जाएगी.

क्या कहते हैं लोग
एक बुजुर्ग सिख श्रद्धालु ने बताया कि जैसे इस पौधे को बचपन से देख रहे थे ये पौधा आज भी वैसा ही दिख रहा है. बल्कि, पहले से और ज्यादा ही घना हो गया है. ऐसा लग रहा है जैसे इसकी उम्र ही नहीं बढ़ी है. उन्होंने आगे बताया कि इस पौधे के पत्ते को या फल को खाने वालो को अवश्य संतान होती है. शायद इसलिए देश- विदेश से आए श्रद्धालु करौंदे के पत्ते और फल को प्रसाद स्वरूप अपने साथ भी लेकर जाते हैं.

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