बिहार के सीवान जिला स्थित एक ऐसे इमारत की हम बात करने जा रहे हैं, जिसका इतिहास 2200 साल पुराना है. यह इमारत सीवान के अमरपुर में सरयू नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है. ये प्राचीन इमारत मौर्य, कुषाण और गुप्तकालीन युग के कई रहस्यों और कहानियों को अपने अंदर समेटे हुए है. इस इमारत की ईंट मौर्य, कुषाण और गुप्तकालीन के समय की है. इसके अंदर बनी सुंदर कलाकृति अपने विरासत पर आज भी इतरा रही है, जिसमें कमल के फूल, चक्र, देवी-देवताओं के तख्त हैं. इस कारण इसे बहुत से लोग मंदिर मानते हैं. यहां अब भी कुलकुला माता की पूजा की जाती है. लेकिन सबसे खास बात यह है कि यहां साल में एक दिन मुस्लिम समुदाय के लोग भी पूजा करने आते हैं.
2022 में हथौजी गांव में मिट्टी की खुदाई के दौरान खेत से पाल कालीन मूर्तियां मिली थी, जिसे ग्रामीणों ने मंदिर बनाकर उसी गांव में स्थापित कर दिया. यहां एक बहुत बड़ा गढ़ भी है, जिसका जिक्र कई अभिलेखों में मिला है. ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा वृतांत में इसका जिक्र किया है. बताया गया है कि यहां एक ब्राह्मण थे, जो बौद्ध अनुयायी थे. इस गांव में वत्स गोत्र के अधिकतर ब्राह्मण हैं और समृद्ध हैं. उपरोक्त सभी साक्ष्यों से स्पष्ट है कि प्राचीनकाल में दरौली बौद्ध क्षेत्र रहा है.
पूरा क्षेत्र मल्ल गणराज्य में था शामिल
दरौली के अमरपुर गांव स्थित प्राचीन इमारत के खंडहर पर गुजरात, महाराष्ट्र, बोधगया से पुरातात्विक छात्र शोध करने आये थे, जो इसमें लगी ईंट को मौर्य, कुषाण और गुप्तकाल के होने की बात बता रहे थे. छात्र अपने शोध और जांच में इसे बौद्ध बिहार बता रहे थे. शोधार्थी दल का नेतृत्व कर रहे छात्र प्रिंस बुद्धमित्र ने बताया कि भगवान बुद्ध ने सरयू नदी के तट पर पटना से वैशाली होते हुए अयोध्या जाने के क्रम में प्रवास किया था. प्राचीन काल में पूरा क्षेत्र मल्ल गणराज्य में आता था. मल्ल राजा भगवान बुद्ध के परम शिष्य थे, जिन्होंने इस बौद्ध बिहार को बनाया होगा. निश्चित ही यह स्थान बौद्ध धर्म से संबंध रखता होगा.
प्राचीनता की याद दिलाती है ये चीजें
लेखक और शोधार्थी कृष्ण सिंह ने बताया कि इस इमारत की ईंट, कलाकृति, कमल के फूल, चक्र अपनी प्राचीनता की याद दिला रहा है. इसके अंदर कुलकुला देवी का पूजन सनातन संस्कृति और परंपरा का स्वरूप है. बताया कि कैटलॉग ऑफ आर्कियोलॉजिकल साइट्स इन बिहार के पेज 197 में इसे प्रथम से तृतीय शताब्दी का बताया गया है. उन्होंने बताया कि इसके ऊपर जो गुंबद है, वह बौद्ध मठ की तरह है. हालांकि यह विवाद का नहीं बल्की शोध का विषय है.
कुलकुला देवी की होती है पूजा
नीय सामीनाथ सहित अन्य लोग बताते हैं कि सदियों से हमारे पूर्वज इस इमारत को खंडहरनुमा ही देखते चले आए हैं. हालांकि स्पष्ट जानकारी नहीं लग सका कि आखिरी यह मंदिर, मस्जिद या फिर बौद्ध विहार था. स्थानीय लोग बताते हैं कि वर्तमान में इस इमारत में कुलकुला देवी की पूजा-अर्चना होती है. यहां साल में एक दिन मुस्लिम समुदाय के लोग भी पूजा-अर्चना करने आते हैं. वैसे यहां प्रतिदिन लोगों का आवागमन जारी रहता है. यहां तक कि दूर-दराज से पर्यटक भी इसको देखने, फोटो खींचने के लिए आते हैं. यह इमारत अपने आप में कई राज को समेटे हुए है.