16 फ्रैक्चर, 8 सर्जरी भी नहीं तोड़ पाई हिम्मत, स्लम में रहने वाली उम्मुल बनी IAS

अंतर्राष्‍ट्रीय खबरें

28 की उम्र तक उसे 16 फ्रैक्चर और आठ बार सर्जरी का सामना करना पड़ा है। यह वो दौर होता था जब वो व्हीलचेयर पर चलती थी। ऑस्टियो जेनेसिस बीमारी के चलते उसकी हड्डियां बहुत आसानी से टूट जाती हैं।

ऐसी बीमारी के साथ मुफलिसी की मार, घर के खराब हालात और अपनों से दुत्कार पाकर भी उम्मुल खेर नहीं टूटी। बुधवार को आए आईएएस परिणाम में उसने 420वें पायदान पर जगह बनाकर सारे हालातों को हरा दिया।

अब कलक्टर बनकर वह जरूरतमंदों और संसाधन विहीन शारीरिक दुर्बलताओं से जूझ रही औरतों के लिए कुछ करना चाहती है।

राजस्थान के पाली मारवाड़ में जन्मी उम्मुल खेर को अपनी कहानी याद है जब वह पांच साल की थीं। वह बताती हैं कि गरीबी थी। हम तीन भाई-बहन का परिवार था। पिता यहां दिल्ली आ गए। पिता के जाने से मां को सीजोफ्रीनिया(मानसिक बीमारी) के दौरे पड़ने लगे।

वह प्राइवेट काम करके हमें पालती थीं। मगर बीमारी से उनकी नौकरी छूट गई। दिल्ली में फेरी लगाकर कमाने वाले पिता हमें अपने साथ दिल्ली ले आए।

यहां हम हजरत निजामुद्दीन इलाके की झुग्गी-झोपड़ी में रहने लगे। 2001 में यहां से झोपड़ियां उजाड़ दी गईं। हम फिर से बेघर हो गए।

मैं तब सातवीं में पढ़ रही थी। पिता के पैसे से खर्च नहीं चलता था तो मैं झुग्गी के बच्चों को पढ़ाकर 100-200 रुपये कमा लेती थी। उन्हीं दिनों मुझे आईएएस बनने का सपना जागा था। सुना था कि यह सबसे कठिन परीक्षा होती है।

हम त्रिलोकपुरी सेमी स्लम इलाके में आकर रहने लगे। घर में हमारे साथ सौतेली मां भी रहती थीं। हालात पढ़ाई लायक बिल्कुल नहीं थे। मुझे याद है कि तब तक कई बार मेरी हड्डियां टूट चुकी थीं। पिता ने मुझे शारीरिक दुर्बल बच्चों के स्कूल अमर ज्योति कड़कड़डूमा में भर्ती करा दिया। यहां पढ़ाई के दौरान स्कूल की मोहिनी माथुर मैम को कोई डोनर मिल गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *