यूपी के संगम नगरी प्रयागराज से करीब 35 किमी दूर स्थित है चरवा (चोरवा)। यह कौशांबी डिस्ट्रिक्ट में पड़ता है। भगवान राम वनवास (14 वर्ष) जाते समय एक दिन इसी चरवा के जंगल में गुजारे थे। यहां श्री राम ने जिस बरगद के नीचे विश्राम किया था वो आज भी मौजूद है।
कैकेई के वरदान और पिता दशरथ के वचन को पूरा करने के लिए श्री राम अयोध्या से श्रृंगवेरपुर (कौशांबी) के गंगा घाट पहुंचे। अगले दिन राम-लक्ष्मण और सीता केवट वत्सराज की नाव से गंगा पार करके बड़हरी के जंगल गए। यहां सरोवर के तट पर स्थित एक बरगद के नीचे विश्राम किया।
दूसरे दिन सुबह जब श्री राम लक्ष्मण और सीता के साथ प्रयागराज जाने के लिए तैयार हुए, उस दौरान उनकी खड़ाऊं वहां से गायब मिली। रामायण के ग्रंथों की माने तो गांव के एक भक्त ने यह खड़ाऊं चुराई थी। उसने भगवान से रुकने का निवेदन किया था।
” तेहि दिन भयऊ बिटप तरु बासु, लखन, सखा सब कीन्ह सुपासू।
प्रात प्रातकृत करि रघुराई, तीरथ राजु दीख प्रभु जाई।।”
इस घटना के बाद, ये जगह चोरवा नाम से फेमस हो गई, जो आज चरवा हो गया है। सत्यप्रकाश (धर्म शास्त्री) के मुताबिक, चरवा में जिस स्थान पर श्री रामचंद्र रुके थे, आज उस स्थान पर मंदिर बन गया है। श्री राम चरित मानस, अयोध्या कांड में दोहा नंबर 104-105 के बीच की चौपाई इस बात का प्रमाण है।
महंत रामेश्वर दास (बड़े महंत श्री राम जोइथा-चोर तीर्थ) ने बताया, भगवान श्री राम, लक्ष्मण, सीता ने श्रृंगवेरपुर के बड़हरी के जंगलों से होते हुए चरवा में उस स्थान पर विश्राम किया। जहां एक तालाब में शीतल जल और एक बरगद के पेड़ की छांव मिली।
तीनों ने सरोवर का पानी पिया और विश्राम भी किया, जिसे लोग ‘राम जूठा सरोवर’ भी कहते हैं। यहां शैव और वैष्णव भक्ति का अनोखा संगम भी देखने को मिलता है। भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के दौरान जहां-जहां भी गए शिवलिंग की स्थापना की।
श्रृंगवेरपुर से वनवासी वेश धारण करने के बाद भगवान राम ने चित्रकूट जाने के पहले पहला शिवलिंग भी कौशांबी के इस चोरधाम में स्थापित किया था। यहीं उन तीनों ने वनवास की पहली रात बिताई थी।