गांव से निकल लोग जब सफल हो जाते हैं तो उसके बाद पीछे मुड़ कर वो अपने गांव और समाज को देखते भी नहीं है। गांव में मौजूद परेशानियों पर लोग भाषण तो जरूर देते हैं।
मगर इन परेशानियों को समाप्त करने के लिए कुछ प्रयास भी नहीं करते। मगर बिहार के सीतामढी जिले से इसके उलट एक खबर आ रही है। शादी के 17 साल बाद जब वो अपने ससुराल लौटी तो गांव की हालत देख इतनी व्यथित हुईं कि बदलाव लाने के लिए सोचने लगीं।
गांव के हालात देख कर उन्हें ऐसा महसूस हुआ मानो वे प्रेमचंद की कहानी में पहुंच गई हों। दूसरे लोगों की तरह नजरअंदाज करने की बजाय ऋतु ने गांव में बदलाव लाने की ठानी और बिहार के सीतामढ़ी के सोनवर्षा प्रखंड के सिंघवाहिनी पंचायत से मुखिया पद पर जीत हासिल कर इस गांव को चर्चा में ला दिया।
कहती हैं कि उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि ऐसा भी कोई गांव हो सकता है। ये सब देख वो इतना द्रवित हुईं कि सुख-सुविधाओं से भरा जीवन और दिल्ली जैसा शहर छोड़ने का फैसला कर लिया। पिछले कई सालों से वो बराबर गांव आती रही हैं।
यहां कोशिश शुरू की तो गांव में आजादी के बाद पहली बार बिजली आई। जब उन्होंने एक बुजुर्ग महिला को बिजली के बल्ब को फूंक मारकर बुझाते देखा तो इस वाकये ने उन्हें झकझोर दिया। उन्हें गांव की हालत देख कर काफी दुख होता था।
अपने प्रयास से ऋतु ने लोगों को समझाया कि अपना वोट मत बेचो। मुखिया को पंचायत में शौचालय और पानी की व्यवस्था करनी होती ह। इसलिए लोगों को चंद रुपयों के लोभ में वोट नहीं बेचना चाहिए।
ऐसा करने से वो सुविधाओं से वंचित हो जाते थे और आजीवन बीमारी के शिकार होते रहते हैं। लोगों ने भी उनकी बात को समझा और उन्हें समर्थन देकर भारी मतों से जीत दिलाया।
उनके प्रयास से आजादी के बाद पहली बार बिजली आई। कुछ एनजीओ की मदद से बच्चों के लिए ट्यूशन क्लास शुरू करवाई गई। असर ये हुआ कि इस बेहद पिछड़े गांव की 12 लड़कियां एक साथ मैट्रिक पास हुई हैं। गांव के लोगों के कहने पर ही उन्होंने चुनाव लड़ा और तमाम जातीय समीकरणों के बावजूद भारी मतों से जीत गईं।
वह कहती हैं कि जिस संकल्प को लेकर वे मुखिया का चुनाव लड़ी हैं उसे वह हर हाल में पूरा करेंगी। अब गांव में रहकर ही गांव की तस्वीर बदलेंगी। उन्होंने बताया कि उनके गांव में ना तो चलने के लिए सड़क है और ना ही पीने के लिए शुद्ध पानी।
लोगों को शौचालय के बारे में भी पता नहीं था कि शौचालय क्या होता है। गांव के तक़रीबन अस्सी प्रतिशत लोग आज भी सड़कों पर शौच के लिए जाते हैं। बिजली सहित तमाम मूलभूत सुविधाओं से लोग अब भी कोसो दूर हैं।