पिछले नौ साल के आंकड़े बता रहे हैं कि सिविल सर्विस में बिहार के फिर पुराने दिन लौटने लगे हैं। 80 और 90 के दशक में बिहार को ‘आइएएस बनाने की फैक्ट्री’ के रूप में जाना जाता था।
उस दौरान बिहार से आइएएस बनने की दर 16 फीसदी रही। हालांकि बाद में उत्तर प्रदेश ने यह स्थान ले लिया। बिहार दूसरे स्थान पर खिसक गया है। इस बार का नतीजा बता रहा है कि बिहार अपनी पुरानी हनक में फिर लौटने लगा है।
इस बार सिविल सर्विस की विभिन्न सेवाओं के लिए 1099 अभ्यर्थियों का चयन किया गया है, जिसमें करीब 50 से अधिक बिहारी हैं। सी-सैट लागू होने के बाद माना जा रहा था कि संघ लोकसेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में बिहार की सफलता का ग्राफ गिर जाएगा।
हिन्दी बेल्ट के अभ्यर्थियों को अंग्रेजी को लेकर ज्यादा दिक्कत होने की आशंका थी, लेकिन बिहार के होनहारों ने इस धारणा को पूरी तरह झुठला दिया। इस बार सिविल सर्विस की ऑल इंडिया रैंक में बिहार के बच्चों उल्लेखनीय सफलता हासिल की है।