प्रभु श्री राम का ससुराल बिहार में है , रामनवमी पर हो रही विशेष तैयारी

कही-सुनी

कल रामनवमी है। वैसे तो सभी जगह प्रभु राम के जन्मोत्सव पर जोर शोर से तैयारियां की जा रही है।लेकिन बिहार के सीतामढ़ी में स्थित उनके ससुराल में इस दिन को मनाने की खास तैयारी चल रही है। 56 प्रकार के मधुर मिष्ठान पकाये जा रहे हैं। भजन कीर्तन का आयोजन किया जा रहा है। जानकी मंदिर को भव्यता पूर्वक सजाया जा रहा है।

 

आइए लेकर चलते हैं आपको भगवान राम के ससुराल में। जानते हैं क्या है वहां का इतिहास। सीतामढ़ी पुनौरा धाम से ५ किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में स्थित है राघोपुर बखरी गाँव. तकरीबन 3000 लोगों की जनसँख्या वाले इस छोटे से गाँव को सीतामढ़ी में बहुत कम लोग जानते हैं ।

तकरीबन १५०० ई. में बना था राघोपुर बखरी का राम जानकी मंदिर। मंदिर की चारदीवारी तकरीबन २० फीट ऊँची थी और मंदिर का भाग तकरीबन एक बीघे में फैला था। मंदिर को किसने बनवाया इसकी जानकारी स्थानीय लोगों को भी नही है, मगर किंवदंती के अनुसार यहाँ 9 पीढ़ी से महंथ इसकी देख रेख कर रहे हैं, औसतन एक महंथ ५०-६० वर्ष तक मंदिर की देख रेख करते हैंजो की मुग़ल कालीन सभी बंगाली मंदिरों में सामान्य है।जिससे अनुमान लगाया जा सकता है की इस मंदिर की उम्र तकरीबन ५०० साल या इससे अधिक है। स्थानीय लोगों का कहना है की मदिर के पास एक जमाने में १३०० बीघा जमीन हुआ करती थीजो की मुग़ल कालीन सभी बंगाली मंदिरों में सामान्य है।

वास्तुकला: इस मंदिर में पूर्वी भारत के तकरीबन2000 से 3000 वर्ष पुराने “टेराकोटा ब्रिक बंगाली आर्किटेक्चर” की झलक देखी जा सकती हैजो की मुग़ल कालीन सभी बंगाली मंदिरों में सामान्य है।

मंदिर का मुख्यआकर्षण गर्भगृह के प्रवेश के बायीं ओर लगा विशाल घंटा है,जिसकी शोभा देखते ही बनती है । घंटे का वजन तकरीबन 400 किलो है ।इसकी धातु दमामी मठ, नौलखा मंदिर , जनकपुर से मिलती जुलती है, जिसे अभी तक वैज्ञानिक पता नही लगा पाए हैं. इस घंटा में जंग का कोई निशान नही है।इसकी संरचना सम्मोहित करती है। घंटे के नीचे चरण पादुका स्थित है जिसपर श्री चतुर भुजाय नमः अंकित है।

वर्तमान स्थिति: समय की मार सहते हुए इस मंदिर का इतने वर्षों तक खड़ा रहना इस बात का प्रमाण है की इस की नीव काफी मजबूत होगी । यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना होते हुए भी उपेक्षा का शिकार है. ये उन लोगों के ऊपर भी एक करारा तमाचा है, जो कहते हैं की सीतामढ़ी में ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व की जगहें उपलब्ध नही हैं. उचित रख रखाव के अभाव में इस मंदिर की संरचना चरमरा गयी है.बेतरतीब उगते पेड़ पौधों ने इस मंदिर को खंडहर का रूप दे दिया है। अगर शीघ्र ध्यान नही दिया गया तो इस मंदिर की सिर्फ स्मृति ही शेष रह जायेगी।

इस मंदिर की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए हम स्थानीय प्रशासन एवं पर्यटन विभाग से आग्रह करते हैं की जिले की इस धरोहर की अविलम्ब रक्षा की जाय और इस मंदिर को पर्यटन स्थल बनाया जाय ।

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