‘पितृवाटिका’ यानि पितरों का बगीचा। वह बगीचा जो पितरों की याद में लगाया गया हो। बगीचा जहां फूल-पति, लताएं और छायादार वृक्ष लगाए गए हैं। वृक्षों की छांव में पुत्र और उसका परिवार वाटिका में जाकर सुखद, शांति की अनुभूति करते हों।
श्रद्धावान पुत्र अपने-अपने पितरों की याद में वाटिका में एक-एक पौधा लगाते हैं, तो पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष भी मिलेगी। गयाजी की पावन भूमि पितरों को मोक्ष दिलाने में सार्थक साबित होती है।
पुत्र उन्हें मोक्ष दिलाने के लिए गयाजी आते हैं, पिंडदान व कर्मकांड करते हैं। यहां आने वाले पुत्र अगर अपने पूर्वजों की याद में एक पौधा लगाते हैं तो यहां का पर्यावरण भी बदलेगा और पितरों की आत्मा को शांति भी मिलेगी। आइए, उन पितरों को नमन और स्मरण करते हुए पितृपक्ष मेला में पितृवाटिका में एक पौधा जरूर लगाएं।
गयाधाम में पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए 54 वेदियां है। यह वेदियां शहर के दक्षिणी, उत्तरी, पूर्वी इलाके में स्थित हैं। यह पितृवाटिका दक्षिणी इलाके में ब्रह्मायोनि पहाड़ की तलहटी में अवस्थित है। माड़नपुर से अक्षयवट जाने वाला रास्ता जो कपिलधारा की ओर जाता है, उस कपिलधारा आश्रम के समीप पितृवाटिका को स्थापित किया गया है।
दो दशक पहले यहां आने वाले श्रद्धावान पुत्र अपने पितरों की याद में पौधा लगाए थे। वह पौधा और नेमप्लेट अभी वर्तमान में नहीं है। फिर भी पितृवाटिका की भूमि में पितरों की याद जरूर आती है। यह वाटिका पूर्वजों का स्मरण कराती है। यहां आने के बाद सुखद शांति की अनुभूति होती है।
पितृवाटिका तक जाने के लिए पक्की सड़क बनाई गई है। जिससे आसानी से यहां तक पहुंचा जा सकता है। वर्ष 1992 में यहां की डीएम रहीं राजबाला वर्मा की सोच की उपज है पितृवाटिका। इसका उद्घाटन 12 सितंबर 1992 को पर्यावरण विभाग के सचिव केएएच सुब्रमण्यम ने किया था।
इसके पीछे मंशा थी कि यहां आने वाले श्रद्धावान पुत्र अपने-अपने पितरों की याद में एक पौधा लगाएं जो भविष्य में वृक्ष बनाकर दूसरों को छाया प्रदान करे। उस समय यहां आने वाले तीर्थयात्री से प्रति पौधा और नेमप्लेट लगाने के लिए 250 रुपये संवास सदन समिति लेती थी। इसकी बकायदा रसीद भी दी जाती थी।
यहां पौधा लगाने का सिलसिला वर्ष 1995 तक चला। उसके बाद से आवाम, गयापाल पंडा और जिला प्रशासन ने ध्यान नहीं दिया। जिसका परिणाम हुआ कि यहां पौधा लगाने का सिलसिला समाप्त हो गया। अब पितृपक्ष मेला में संवास सदन समिति से पितृवाटिका में रसीद नहीं काटी जाती है।
जब रसीद नहीं कटेगी तो पौधा लगाने बात ही कहां होगी। लेकिन, अगर संवास सदन समिति, जिला प्रशासन, नगर निगम व गयापाल पंडा प्रयास करे तो एक बार फिर से यह पितृवाटिका में चमन लौट सकती है। इसके लिए जरूरत है। पिंडदानियों को प्रेरित करने की।